SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अंकित है। इसका रचनाकाल सं० १७८३ है। यह रत्ननन्दि द्वारा विरचित भद्रबाहु चरित (संस्कृत) पर आधारित है, यथा - संवत सतरह से असी ऊपरि और है तीन, माघ कृष्ण कुज अष्टमी ग्रंथ समापत कीन्ह' । केवल वोध प्रकास रवि उदै होत सखि साल, जग जन अन्तरतम सकल छेद्यो दीनदयाल । इसमें चार सन्धियाँ हैं, नाना छन्द हैं, सामान्य कोटि की रचना है । रात्रि भोजन को नागश्री कथा भी कहते हैं। इसका प्रारम्भ इस प्रकार है - समोसरण शोभा सहित जगतपूज्य जिनराज, नमौ त्रिविध भवदधिन को तारण विरुद जहाज । यह रचना सं० १७७३ श्रावण शुक्ल ६ को पूर्ण हुई। बावनी (सं० १७६३) का मंगलाचरण प्रस्तुत है ॐकार अपर अपार अविकार अज, अचरजु है उदार, दादनु हुश्न को । कुंजर ते कीट परजन्त जग जन्तुताके, अन्तर को जागी बहुनामी सामी सन्त को। चिंता को हरनहार चिता को करनहार, पोषन भरनहार किसन अनन्त को। अन्त कहै अन्त दिन राखे को अनन्त बिन, ताके तंत अन्त को भरोसा भगवन्त को। चेतनगीत--चेतन जो भ्रम में भूलकर सत्य से पराङ्मुख हो गया उसे उद्बोधित करते हुए कवि किशन कहते हैं -- ___तुम सूते काल अनादि के जागो जागोजी चेतन गुणवान ।' लब्धि विधान व्रत कथा में गौतम गणधर का चरित्र चित्रित है। रचनाकाल सं० १७८२ है यथा 'शुभ वयासिय सत्रह सौ समे' (लब्धि १. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल--राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की सूची भाग ४ पृ० २३१ और २३८, भाग ३ पृ० २७०-२७९ २. वही ३. डॉ० प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि पृ० ३२७-३३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy