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________________ ८० मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कृपाविजय-धनविजय के शिष्य थे। इन्होंने 'बार व्रत' पर १२ संञ्झाय नामक रचना की है जिसका प्रारम्भ इस प्रकार है समकित रतन जतन करी राखो, दूषण पंच निवारी रे, जेह थकी लहीइ सीव संपति, श्री जिनवचन विचारी रे । अन्त-बारमो व्रत आराधता रे, कांकर थया रे निधान, कृपाविजय कहे पोषाइ रे, उत्तम पात्र प्रधान कर जोडी ने वीनवु जी, धनविजय गुरु सीस, कृपाविजय कहे जे, सुणे जी, ते लहे अधिक जगीस ।' कृपाराम-आपके पिता का नाम तुलाराम था। आपका निवास स्थान शाहजहांपुर था। आपने सं० १७४२ में 'ज्योतिष सार' नामक ज्योतिष पर एक ग्रंथ लिखा है। एक उद्धरण उपस्थित है के दरियो चौथो भवन, सपतम दसमौं जान, पंचम अरु नौमो भवन अह त्रिकोण बखान । तीजो षटरस ग्यारसो घर दसमो कर लेखि, इनको उपमै कहत है सर्वग्रंथ में देखि । इस प्रकार जैन पंडितों ने हिन्दी छंदों में सभी विषयों पर रचनायें की हैं। किशनदास कीसन प्रथवा कृष्णदास मुनि-ये गजराती लोकागच्छ के श्री संघराज जी महाराज के शिष्य थे। इनके मूल निवास स्थान और जन्मतिथि के बारे में निश्चित सूचना नहीं मिलती, परन्तु इतना निश्चित है कि इन्होंने सं० १७६७ अश्विन शुक्ल दसमी को जैन संघ में दीक्षित अपनी बहन रतनबाई को उपदेश देने के लिए 'उपदेश वावनी' या किशनबावनी की रचना की थी, परन्तु इन पंक्तियों से भिन्न सूचना मिलती है - १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० १५२९ (प्र० सं०) भाग ५ पृ० ३७२ (न० सं०)। २. कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन शास्त्र खण्डारों की ग्रंथ सूची भाग ४ पृ० ३१-३२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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