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________________ कांतिविमल गोडी पार्श्वनाथ छंद (५१ कड़ी) प्राचीन छंद संग्रह में प्रकाशित है। इसका आदि देखिए सुवचन मुझ सारदा सामिण तु समरत्थ, गोडीरा गुण गावतां उपजे सरस अरत्थ ।' कांतिविमल तपागच्छीय शांतिविमल > कल्याणविमल>केसरविमल के आप शिष्य थे। आपने सं० १७६७ मागसर शुक्ल १० रविवार को राधनपुर में ८९० कड़ी ४१ ढाल की रचना विक्रम (चरित्र) कनकावती रास लिखा जिसकी प्रारम्भिक पंक्तियां निम्न हैं--- सकल समीहित पूरवे परतिख पास जिणंद, अलिय विघन दूरे हटें सेवे सुरनर वृन्द । इसमें शील का महत्व दृष्टांत देकर समझाया गया है, यथा -- शीलें शिव सुख पामीइं शीलें वांछित होय, सुख पाम्या कनकावती ते सुणज्यो सहूँ कोइ । विक्रम राय चरित्र मां सरस सूणो अधिकार, रास रचुं रलीयामणौ श्रोताजन सुखकार। रचनाकाल - सायर रस मुनि चंद्रमा, अहवो संवत्सर मनि जांणि हो, रे हो राज । मागसिर शुदि दसमी दिने रविवारे कीध प्रमाण हो, रे हो राज । आपने ग्रंथ में उपरोक्त गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, यथा--- तस पयकमल मधुकरा बुधकल्याणविमल सुखदाय हो राज, तस वंधव कोविद वली, श्री केसरविमल गुरुराय हो राज । एकतालिस ढाले करी में तो रचियो रास रसाल हो राज । कांतिविमल कहे अहवं होज्यो घरि घरि मंगलमाल हो राज । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० २७०-२७६ (न० सं०)। २. वही भाग २ पृ० ४६८-४७०, भाग ३ पृ० १४१६ (प्र०सं०) और भाग ५ पृ० २६४-२६६ (न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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