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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
रचनाकाल .-संवत शर मुनि विधु वर्षे रही पाटण चोमास।
श्री विजेक्षमा सूरीश्वर राज्य गाइ मलया उल्हास रे। . केशी गणधर ने मलयचरित का वर्णन किया था, उस पर जयतिलक ने नतनमलयचरित रचा । ज्ञानरत्न ने उसकी व्याख्या की। उसी पर आधारित यह रचना है। इनके अतिरिक्त इनकी एकादशी स्तवन, चौबीसी हीराबेध बत्रीसी, सौभाग्य पंचमी, माहात्म्य गभित श्री नेमिजिन स्तव, अष्टमी स्तव, ऋषभ जिन स्तव, गोडी पाश्र्वनाथ छंद आदि प्रकाशित रचनायें उपलब्ध हैं । इनके संक्षिप्त उद्धरण दिए जा रहे हैं -
एकादशी स्तव (१७६९ मागसर शुक्र ११, डभोई) रचनाकाल -
सतरसय उगणेतर समे रही डभोइ चउमास ,
सुदि माश मृगसिर तिथ इग्यारस रच्या गुण सुविसाल । चौबीसी अथवा चोबीश जिन स्तव (सं० १७७८ मागसर शुक्ल १) का आदि इस प्रकार है - सूगण सूगण सोभागी साचो साहिबो हो जी, मीठडो आदि जिणंद । मोहन मोहन मूरति रुडो देखतां हो जी, वाधइ परम आणंद ।
यह चौबीसी बीसी संग्रह और ११५१ स्तवनमंजूषा में भी प्रकाशित है।
हीराबेधी बत्रीसी बुद्धि प्रकाश वर्ष ८१ अंक ? में प्रकाशित है ।
सौभाग्यपंचमी मा० ग० श्री नेमिजिन स्तव (सं० १७९९ श्रावण शुक्ल ५ रविवार, पालणपुर। रचनाकाल सतर नवाणआ रहीओ, पाल्हणपुर चोमास,
श्रावण सुदि तिथि पंचमी हस्ता-दिन खास । यह प्राचीन जैन पर्वाचार्यों विरचिय स्तवन संग्रह में प्रकाशित है।
अष्टमी स्तवन चैत्य आदि संग्रह और जिनेन्द्र भक्तिप्रकाश में प्रकाशित हो चुकी है।
ऋषभ जिन स्तव जैन काव्यसार पृ० ६१४ पर प्रकाशित । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० २७०-२७६
(न० सं०)। २. वही भाग २ पृ० ५२६-६३, भाग ३ पृ० १४३८-३९ (प्र० सं०) और
भाग ५ पृ० २७०-२७६ (न० सं०)
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