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कांतिविजय
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पंचमहाव्रत संञ्झाय (५ ढाल) संञ्झाय माला भाग १-२ में प्रकाशित रचना है। इसी संकलन में रात्रिभोजनत्याग संञ्झाय और सुंदरी महासती संञ्झाय भी प्रकाशित है। इनके अलावा हरियाली (६ कड़ी) और भगवती पर संञ्झाय इनकी अन्य दो लघु कृतियाँ भी प्राप्त हैं।
कांतिविजय II तपागच्छीय विजयप्रभसूरि के प्रशिष्य एवं प्रेमविजय के शिष्य थे । इनकी एक रचना 'महाबल मलयसुंदरी रास' इसलिए विवादास्पद हो गई है क्योंकि मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने जैन गुर्जर कवियो के भाग २ और भाग ३ प्र० सं० में तो इसे कांतिविजय की रचना बताया है किन्तु इसके नवीन संस्करण के सम्पादक कोठारी ने इसे छोड़ दिया है पर छोड़ने का कोई सन्तोषजनक कारण नहीं बताया है इसलिए मैं इसे इन्हीं कांतिविजय की रचना मानकर विवरण दे रहा हूँ।'
महाबल मलयसुंदरी रास (चार खण्ड १७७५ वैशाख शुक्ल ३, पाटण) आदि-स्वस्ति श्री सुखसंपदा, पूरण परम उदार ।
आदीश्वर आनंदनिधि, प्रणमुं प्रेम अपार । इसमें कवि का नाम कांति दिया हुआ है, यथा--
जे भवि भावे भणस्ये गुणस्ये लहिस्ये ते जयमाल ।
ओगण च्यालीस मी कही कांति, चोथा खंडनी ढालरे । इसमें गुरु परंपरा दी गई है, यथा -- श्री तपगण गणनायक गिरुआ श्री विजयप्रभ सूरी।
गुणवंता गौतम गुरु तोले महिमा महिम सनूर रे । तास शिष्य कोविद कुलमंडन प्रेमविजय बुधराया,
कांतिविजय तस शिष्ये इणि परे विधविध भावण गाया रे । इसलिए इसके आधार पर ये ही कांतिविजय इसके रचयिता सिद्ध होते हैं। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ५२६,
भाग ३ पृ० १४३८ (प्र० सं०) ।
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