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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसमें बताया गया है कि यशोविजय की कीर्ति बढ़ते-बढ़ते राजसभा तक पहुँची कीरति पसरी दिसि दिसि उजली जी विबुध तणी असमान, राजसभा मां करतां वर्णना जी निसूणे महोबत खान । गुञ्जरपति ने हंस हुई खरीजी, जोवा विद्यावान, तास कथन थी जस साधे वलीजी, अष्टादश अवधान । यशोविजय ने महोबतखान को राजसभा में अष्टादश अवधान के चमत्कार से प्रसन्न किया। यह रचना देसाई के संशोधन के साथ ज्योति कार्यालय से प्रकाशित है। यह प्राचीन स्तवन संग्रह में भी सङ्कलित है।' इसमें गुरु परम्परा नहीं है । इसे देसाई के कथनानुसार ही कांतिविजय की रचना माना गया है। संवेग रसायन बावनी का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है -- सकल मनोरथ पूरवइ, श्री संखेसर पास । कृपा करी मज ऊपरी, आयो वचन विलास । अन्त-श्री गुरु हीर सुरिंदना, श्री कीर्तिविजय उवझाय, तेह तणा सुपसाय थी, में कीधी अह संञ्झाय । गुरु भ्राता गुरु सशिखा श्री विनय विजय उवझाय, गंथ बेलाख जेहणे कर्यो, रंगीले आतमा वादी मद भंजणहार संवेग रसायन बावनी जे सुणे नर ने नार, कांति विजय कहे तस घरे नितनित मंगल माल । चौबीसी में भी लिखा है___ कीति विजय उवझाय नो इम कांति विजय गुणगाय हो । इनकी रचनाओं 'शील पचीसी' (२७ कड़ी), पंचमहाव्रत संय आदि में यही गुरु परम्परा बताई गई है। इसी समय एक अन्य कांति विजय भी हो गये हैं पर ये रचनायें कीर्ति विजय शिष्य कांतिविजय की ही हैं। शील पचीसी में कहा है - श्री तपगच्छ सोहकरू रे, श्री कीर्तिविजय उवझाय रे, कांतिविजय हर्षे करीरे, कीधी मे सञ्झाय रे ।' १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -. जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० ५०-५२ (न० सं०)। २. वही ३. वही भाग २ पृ० १८१, भाग ३ पृ० १२०९ (प्र० सं०) और भाग ५ पृ० ५०-५३ (न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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