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________________ कहान जी गणि कड़ी सं० १.६७ फाल्गुन जंबुसर में और मेघमुनि संज्झाय ( ७ कड़ी सं० १७७० कालावड में) लिखा था। कल्याणसागर सूरि शिष्य की एक रचना 'सिद्धगिरि स्तुति (१०९ कड़ी) प्राप्त है। यह जैन रत्न संग्रह और प्राचीन स्तवन संज्झादि संग्रह में प्रकाशित है। इसका प्रारंभ इस प्रकार है श्री आदीश्वर अजर अमर अव्यावाध अहनीश, परमातम परमेसरु प्रणमु परम मुनीस । अन्त में दिया है . श्री कल्याणसागर सूरि शिष्ये, शुभ जगीसें सुखकरी । पुण्य महोदय सकल मंगल, वेलि सुजसे जयसिरी ।' यह शिष्य उदयसागर हो सकते हैं। कानो----मांकड भास नामक दो कड़ी की छघकृति सं० १८१० से पूर्व की रचित है। इसलिए इसे १८वीं शती के अंत की रचना मानकर देसाई ने १८वीं शती में इसे रखा है। मांकण माठां माणसां अह थी रहीइं दूरि, कर जोडि कांनो कहिं विजओ नदीपुर । मांकण मांण माणसां ढांक्यां न रहे लिगार, कर जोडि कांनो कहे बदन तणे विकार । यह रचना प्रकाशित हो चुकी है। कांतिविजय- ये तपागच्छीय कीर्तिविजय के शिष्य विनयविजय जी उपाध्याय के गुरु भाई थे । आपकी प्रसिद्ध रचना ‘सुजस वेलीभास (४ ढाल) सं० १७४५ के आसपास पारण में पूर्ण हुई। इसमें यशोविजय के गुणों का वर्णन किया गया है, यथा ---. प्रणमी सरसति सामिनी जी, सुगुरु नो लही सुवसाय । श्री यशोविजय वाचक तणाजी, गाइसुं गुण समुदाय । गुणवंता रे मुनि वरधन तुम ज्ञान प्रकाश । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० १४-१५ (प्र० सं०), भाग ५ पृ० ३३७ (न० सं०) । २. वही भाग ५ पृ० ४२२-४२३ ( न० सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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