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कर्मसिंह इसके कर्ता का नाम कर्मचन्द दिया है किन्तु इससे पूर्व भाग २ पृ० २७१ पर इसके कर्ता का नाम उन्होंने कर्मसिंह बताया था, किन्तु दोनों जगह गुरुपरम्परा एक जैसी है अतः दोनों एक ही व्यक्ति हैं जिसकी रचना रोहिणी रास है । उसका प्रारम्भ प्रस्तुत है
श्री जिनपय युग प्रणमियइ, वासुपूज्य अभिधान ।
सोवनगिरि श्री पास जिण, महिमा मेरु समान ।' देसाई ने रचनाकाल सं० १७३० और १७३७ दोनों बताया है। भाग दो जैन गर्जर कवियो में रचनाकाल "संवच्छर सतरैतीसे, कातीमास जगीसै जी' लिखा है और भाग ३ में 'संवत्सर सतरे सेतीसे कातीमास जगीसे जी, दिया है । लगता है यह भ्रम प्रतिलिपि में सतरेसे तीसे और सतरे सेतीसे लिखने से उत्पन्न हो गया है। गुरुपरंपरा सर्वत्र एक जैसी है यथा 'श्री पासचंद सूरि गच्छ प्रतापी जगतमां कीरतिव्यापी जी, से शुरू करके जयचंदसूरि>पदमचंदसूरि>मुनिचंद जयचंद और प्रमोदचंद वाचक का सादर नामोल्लेख किया गया है। कवि ने अपना नाम कर्मसिंह ही लिखा है, यथा -
अ अधिकार जग भणै भणावै ते कर मंगल आवै जी,
संघ चतुरविध सदा सुहावै, करमसीह गण गावै जी। जैन रास संग्रह के पाठ में भी कवि ने अपने को 'तास शिष्य करमसिंह'२ ही कहा है। इसलिए रचनाकाल की तरह रचनाकार के नाम में भी भ्रम हो गया और कवि का नाम कर्मचंद नहीं वरन् कर्मसिंह ही है।
कर्मसिंह II-ये भी पार्श्वचंद्र गच्छ के कवि थे। इनकी गुरु परंपरा पृथक् है। ये राजचंद्र>हीरानंद>ठाकुरसिंह>धर्मसिंह के शिष्य थे। इन्होंने 'अढार नामां चौपाई' ( मोह चरित्र गर्भित) ९ ढाल सं० १७६२, पाटण में लिखा । यह रास भी रोहिणी रास (कर्मचंद कर्मसिंह) के ठीक पहले जैन रास संग्रह भाग १ (मातृचंद ग्रंथमाला पृ० ३२-३९ के पृ० ७९-९२ पर प्रकाशित है। इसका आदि इस प्रकार है१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ० ४२८
(न० सं०) और भाग २ पृ० २७१ तथा भाग ३ पृ० १३३० (प्र० सं०) । २. जैन रास संग्रह भाग १
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