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कमलहर्ष
जिनरत्न सूरि निर्वाण रास (ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह के पृ० २३४-४० पर प्रकाशित है) ४ ढाल सं० १७११ श्रावण शुक्ल ११ रविवार, आगरा का आदि
सरसति सामणि चरणकमल नमी; हीयडइ सुगुरु धरेवि,
श्री जिनरतन सूरीसर गुरु तणा, गुण गाऊ संखेवि । रचनाकाल-संवत सतरइ सय भलइ, इग्यारे हो श्रावण वदि सार ।
सोमवार सातम दिनइ, सोभागी हो पहले पहर मझार । अति जयवंतु आगरइ, खरतर संघ सुखकार ।
सुख संपत देज्यो सदा धरि मन शुद्ध विचार ।' रास का अध्ययन करने पर पता लगता है कि सं० १७०० में पट्टासीन होने के पश्चात् जितरतन सूरि सं० १७०८ में आगरा आये और बीमार पड़ गये। वहीं पर सं० १७११ श्रावण वदी ७ सोमवार को स्वर्गवासी हो गये। उन्हीं की स्मृति में प्रस्तुत निर्वाण रास कमलहर्ष ने उसी समय लिखा था । इनकी अन्य रचनाओं का संक्षिप्त परिचय सोदाहरण आगे दिया जा रहा है।
दशवैकालिक १० अध्ययन स्वाध्याय सं० १७२३ सोजत में लिखा गया था। धन्ना चौपइ सं० १७२५ आसो शु० ६ सोजत में लिखी गई, इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया है ---
वाण नयण वारिधि शशि वरसइ, आसू सुदि छठी दिन सरसइ। सोझित नगर सदासुख थापइ, धरमनाथ जिनकर सुपसायइ।
उपरोक्त संकेताक्षरों से रचनाकाल १७२५ प्रतीत होता है। इसमें धन्ना सेठ की कथा को दान के दृष्टांत रूप में प्रस्तुत किया गया है । कवि कहता है -
भवियण दान धन्ना जिम दीजइ, भावइ वलि भावना भावीजइ, इह भव परभव दान प्रभावइ, पगि पगि कीरति कमला पावइ।
समाज में अपनी शाहखर्ची और दान के कारण धन्नासेठ का नाम एक कहावत बन गया है।
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ० १८६
(न० सं०)। २. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ. २३४-२४० ।
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