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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहड्ड इतिहास जासु प्रसाद पामी करी, मानव महिमावंत, पारस पामी लोह जिम, धरे सुकंचन कंत ।' पामी सहाय्य इहांनौ पूरौ, संबंध कीयो मे सनूरो बे, रुडी ढालां बात पिण रस री, मीठी दूधज्यु मिसरी बे । कनकसिंह -ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह में जिनरतन सूरि गीतानि में चौथागीत कनकसिंह कृत है, एक उद्धरण देखिए - कनकसिंह गणिवर कहइ, दिन दिन धुं आसीस, श्री जिनरतन सूरिंद जी, प्रतपउ कोडि वरीस । इस कड़ी की पाँचवीं रचना विमलरत्न की है जिसमें जिनरत्न सूरि को युगप्रधान कहा गया है। गीत का उदाहरण यथास्थान दिया जायेगा। जिनरतन सूरि गीतानि के अन्तर्गत रूपहर्ष, खेमहर्ष आदि के गीत भी दिये गये हैं। ऐतिहासिक रास संग्रह में भी ‘जिनरतन सूरि गीतम्' संकलित है। कमलहर्ष ने जिनरतन सूरि निर्वाण रास लिखा है। इन सूत्रों से सूचित होता है कि जिनरतन राजस्थान में सेरुणा ग्रामवासी तिलोक और तारा के पुत्र थे, जन्म १६७०, जिनराजसूरि से दीक्षा सं० १६८४, पट्टासीन सं० १७०० में हुए थे। कमलहर्ष -खरतरगच्छ के जिनराजसूरि>मानविजय आपके गुरु थे। आपने जिनरत्नसूरि निर्वाणरास सं० १७११ आगरा, दशवैकालिक गीत सं० १७२३ सोजत, पांडवरास सं० १७२८ मेड़ता, धन्ना चौपई सं० १७२५ सोजत, अंजना चौपई सं० १७३३, कुलध्वज चौपई, वीरवृहत् स्तवन गाथा ८३ जोधपुर, आदिनाथ बृहत् स्तवन गाथा ५३, रात्रि भोजन चौपई सं० १७५० लणकरण, पाश्र्वनाथ स्तवन इत्यादि कई रचनायें की हैं। आपके शिष्य विद्याविलास और उदयसमुद्र भी अच्छे विद्वान् और रचनाकार थे । ३ १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ३५७-५८ (प्र० सं०), भाग ५ प० २९ (न० सं०)। २. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह । ३. अगरचन्द नाहटापरंपरा पृ० १००। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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