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कनककीर्ति
कनककीति- इनकी दो रचनाओं का उल्लेख श्री उत्तमचंद कोठारी ने अपनी सूची में किया है प्रथम 'नेमिनाथ रास' सं० १७४७ की और द्वितीय नेमिनाथ चौपाई सं० १७७८ की बताई गई है। चूंकि कोई उद्धरण या विवरण नहीं दिया गया है इसलिए यह कहना कठिन है कि ये दो रचनायें अलग-अलग हैं या एक ही रचना के दो नाम हों और प्रतियों का लेखन काल अलग-अलग हो ।'
कनककुशल आप तपागच्छीय प्रतापकुशल के शिष्य थे। ये राज सम्मानित आचार्य कवि थे। इन्होंने तथा इनके शिष्य कुँवरकुशल ने कच्छप्रदेश में ब्रजभाषा के प्रचार-प्रसार में बड़ा योगदान किया था। कच्छ के राव लखपतसिंह ने भुज में ब्रजभाषा काव्यरचना की शास्त्रीय शिक्षा देने के लिए एक पाठशाला की स्थापना की थी और कनककुशल को उसका संचालक नियुक्त किया था। वैसे ये राजस्थान के किशनगढ़ से आए थे। ये संस्कृत के प्रगाढ़ पंडित और व्रजभाषा के कुशल साहित्यकार थे। महाराव ने इन्हें भट्टार्क की पदवी से अलंकृत किया था। इस पाठशाला में कहीं से भी आने वाले छात्रों को निःशुल्क आवास, भोजन की व्यवस्था थी। __ कनककुशल ने सं० १७९४ में लखपत मंजरी नाममाला, लखपति पिंगल, सुंदर शृङ्गाररसदीपिका ( श्लोक सं० २८७५ ) सं० १७९८, महाराओ श्री गोहड जीनो जस और लखपतयशसिन्धु आदि ग्रंथों की रचना की है। इन ग्रंथों से महाराव लखपतसिंह के असाधारण विद्याव्यसनी व्यक्तित्व की झलक मिलती है | लखपत मंजरी और लखपत यशसिंधु उनके अन्य गुणों को उद्घाटित करते हैं । सुन्दर शृङ्गार रस दीपिका सुंदर शृङ्गार की भाषा टीका है। इनकी भाषा शैली का एक नमूना देखिए --
विकट वेर वेताल कनक संघट जब जोरत, अरिंगढ़ गंजन अतुल सदल शृङ्खला बल तोरत । ऐसे प्रचंड सिंधुर अकल महाराज जिन मान अति,
पठये दिल्लीस लखपति को, कहे जगत धनि कच्छपति ।२ १. श्री उत्तमचन्द कोठारी (जलगाँव) की सूची प्राप्तिस्थान-पार्श्वनाथ
विद्यापीठ, वाराणसी। २. डॉ. हरिप्रसाद गजानन शुक्ल 'हरीश' --गुर्जर जैन कविओ की हिन्दी
कविता को देन पृ० १०२-१०३ ।
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