SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कनककुशल ने सैकड़ों शिष्यों को व्रजभाषा और साहित्य शास्त्र की शिक्षा दी और व्रजभाषा का साहित्य समृद्ध किया तथा उसका प्रचुर प्रसार किया ।' आपकी भाषा और रचना शैली रीतिकालीन वीररस तथा व्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि भूषण और पद्माकर आदि के मेल में है जिन लोगों ने अपने आशयदाताओं के शौर्य और गुणज्ञता की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। ६८ कमकनिधान - आप खरतरगच्छीय जिनकुशल सूरि की परंपरा में हंसप्रमोद के प्रशिष्य और उपाध्याय चारुदत्त के शिष्य थे । इन्होंने सं० १७२८ में "रत्नचूड़ व्यवहारी रास" लिखा जो भीमसी माणेक द्वारा प्रकाशित है । विवरण निम्नलिखित है रत्नचूड व्यवहारी रास ( सं १७२८ श्रावण कृष्ण १०, आदि- स्वस्ति श्री शोभा सुमति, लीला लबधि भंडार, परता पूरण प्रणमीई, अडवडियां आधार । रचनाकाल - संवत गयवर आंखड़ी मुनिवर शशी उदारो रे ( १७२८) श्रावण वदी दशमी ने दिने, चोपई जोड़ी सुक्रवारे रे । गुरु परंपरान्तर्गत खरतरगच्छ के जिनराज से लेकर जिनरतन, जिनचंद, जिनकुशल, हंसप्रमोद, और चारुदत्त का स्मरण किया गया है । आप लिखते हैं शुक्रवार ) कनकनिधान वाचक रची ओ चोपई चोबीस ढालो रे, सखर संबंध सोहामणो, सरवरी चोपई चोसालो रे । इसमें रत्नचूड़ व्यवहारी की कथा के द्वारा दान का माहात्म्य बताया गया है, यथा दाने जग माने सहू दाने दोलति होय, इह भवि अविड सुख हुवे, साराहें सहुलोय । रतनचूड व्यवहारी ओ पुण्यवंत परसीद, तेह तणा गुण वरणवुं नाम थकी नव निधि । ' १. डॉ० चन्द्रप्रकाश सिंह - भुजकच्छ ब्रजभाषा पाठशाला पृ २१ । २. अगरचन्द नाहटा - परंपरा - पृ १०५ । ३. मोहनलाल दलीचंद देसाई -- जैन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ० ४१८-१९ ( न० सं० ) और भाग २ पृ० २६३-६४ तथा भाग ३ पृ० १२६८ ( प्र ० सं ० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy