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________________ সবিনয় और मंगलकलश रास तथा कुछ अन्य रचनायें की है जिनका नाम आगे दिया गया है।' समुद्रकलश संवाद, शंखेश्वर ( पार्श्व ) जिनराज गीत, उत्तराध्ययन ३६ संञ्झाय, २० विरहमान जिन गीतानि, अनाथी मुनि संञ्झाय आदि । श्रीपाल रास (६ खण्ड, ७७ ढाल, २०५५ कड़ी सं० १७२८ दीपावली, किशनगढ़) का आदि उदय करे श्रतदेवता प्रसन्न थइ जेण, अरिहंतादिक हुं जपुं नवपद अहनिशि तेण । यह रचना जिनविजय के आग्रह पर की गई थी, यथा-- जिनविजय पंडित तेहना रे तेहने कथने अह, श्री श्रीपाल नरिंदनी, में कीधी चोपाई नेह । मत्तर अडवीसे करी रे चोपाई अह उदार, दीवाली दिवसे सूखे श्री किशन गढ़े जयकार । रोहिणी तप रास (२३३ कड़ी) की अंतिम पंक्तियाँ देखिए जिसमें गच्छ का परिचय है --- विजयदेव सूरी गच्छ के राया, तेहना पाट दीपाया जी, ने श्री विजयसिंह मनभाया, गोतम गुणे कहाया जी। तस सीस उदयविजय उवझाया, दिनदिन नर सवाया जी, लीला लखमी वांछित पाया, मंगल नूर बजाया जी। ममुद्र कलश संवाद (२७२ कड़ी सं० १७१४ दीपावली, राधनपुर) आदि-मकल कला केली कुशल चतुर पुरुष अवतंस, जास जापई हुई जगत मां ओपावइ निजवंश। रचनाकाल-विद्या मुनिवर शशधर मित संवत्सरइ रे(१७१४) दीप महोत्सव दीस रे, पुरनर पुरवर राधनपुर मांहि रच्यो रे पुहती पुहती संघ जगीस रे । १. अगर चंद नाहटा परंपरा पृ० १११ । २. मोहनलाल दलीचंद देसाई ...जैन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ० २६६-२७४ (न० सं०) और भाग २ पृ० २५५-२५८ (प्र० सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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