SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ L मगर्जर हिन्दी जैन साहित्य का वृहद् इतिहास घणा काल नूं खामि मइं आज दीर्छ । मुझ लागउ चितिउ अमीय मीठु ।' पंचमी स्तवन में पंचमी व्रत का माहात्म्य बताया गया है, यह व्रत जैनममाज में खूब प्रचलित है, इसका प्रारंभ देखिये मरसती समाणी समरी माय हीयडे समरी श्री गुरुराय । पंचमी तपनो महीमा घणो भवियण भाव कहं ता सूणो । भीड़भंजन स्तव छह कड़ी की छोटी रचना है पर भीड़ (कप्ट) भंजन के लिए इसके जाप का महत्व है। इसके अंत की पंक्ति निम्नवत् __ भीड़ भंजन प्रभु पास जिनेसर, पुजतां पाप पलाइ छे रे । इनकी रचनाओं का विषय वैविध्य, वर्णन विस्तार और काव्यकौशल इन्हें महत्वपूर्ण कवि सिद्ध करते हैं। इनकी भाषा में राजस्थानी से गुजराती के प्रयोग अधिक प्राप्त होते हैं। यह संभवतः गुर्जरनिवास का प्रभाव होगा फिर भी भाषा पूर्णतया गजराती नहीं हैं। भाषा मरल गुजराती प्रभावित मरुगुर्जर ही है। उदैराम .. आपकी रचित दो जखड़ी (हिन्दी भाषा) उपलब्ध हैं। दोनों ऐतिहासिक हैं। इनमें भट्टारक अनंतकीर्ति के (सं० १९८५ में सांभर) चातुर्मास का वर्णन है। दिगम्बर साहित्य में इस प्रकार की रचनाएँ कम उपलब्ध हैं। इस दृष्टि से इसका महत्व है, पर भाषा और काव्य की दृष्टि से सामान्य कोटि की कृतियाँ हैं । उदयविजय -आप तपागच्छ के सूरि विजयसिंह के शिष्य थे। इन्होंने श्रीपाल रास ( ६ खण्ड सं० १७२८ कुशलगढ़), रोहिणी राम १. मोहनलाल दलीचंद देसाई जैन गुर्जर कवियो भाग ', पृ० ४११-४१२ (न० सं०)। २. वही भाग ५, १० ७६-११४, ४११-१२ (न० सं०) और भाग २ पृ० ३८६-४१४, भाग ३ पृ० १३४९-६५ (प्र० सं०)। ३ सम्पादक कस्तूरचन्द कासलीवाल और अनुपचंद--राजस्थान के जैन शासा भंडारों को ग्रंथ मुची भाग ३ पृ० १० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy