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________________ ५० मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसमें शील की महत्ता माणिक नरेन्द्र की कथा के माध्यम से स्पष्ट की गई है। दान शील तप भावना अ, धर्म मांहि मखि शील व्रत सारथक वली तेहना, जे पालइ जगि शील ।' कवि ने नवरसों की सूची संस्कृत श्लोक में दी है, इससे उसके काव्य शास्त्र संबंधी अभिरुचि का अनुमान होता है। इस रचना का कुछ भाग जैनाचार्य श्री आत्मानंद शताब्दी स्मारक ग्रन्थ के पृ० १९२ से १९६ पर प्रकाशित हुआ है। उदयरत्न---खरतरगच्छ के जिनसागर सूरि के शिष्य उदयरत्न ने सं० १७२० फाल्गुन कृष्ण २, गुरुवार को जिनधर्मसूरि के आदेश से 'जंबू चौपाई' की रचना की। इसका उदाहरण और अन्य विवरण नहीं मिला। उदयरत्न II--तपागच्छीय विजयराज> विजयरत्न हीररत्न> लब्धिरत्न>सिद्धरत्न > मेघरत्न >अमररत्न>शिवरत्न के शिष्य थे। ये इस शती के एक महत्वपूर्ण कवि हो गये हैं। इनकी छोटी-बड़ी पचासों रचनायें प्राप्त हैं जिनमें से अनेक प्रकाशित हो चुकी हैं। ये खेड़ा गुजरात में प्रायः रहते थे और इनका स्वर्गवास मियांगाँव में हुआ था। इन्होंने शृङ्गाररस पूर्ण एक रचना 'स्थ लिभद्र नवरसो' लिखी थी जिसके कारण आचार्य ने इन्हें संघ से बहिष्कृत कर दिया था; बाद में इन्होंने 'नववाड ब्रह्मचर्य' की रचना की तो पुनः तीन-चार वर्ष पश्चात् संघ में प्रवेश प्राप्त हुआ। आप एक प्रभावक साधु थे और जैनधर्म के प्रचार-प्रसार में इन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इनकी कुछ रचनाओं का विवरण-उद्धरण आगे दिया जा रहा है। जम्बू स्वामी रास (६६ ढाल सं० १७४९ बीजा, भाद्र शुक्ल १३, खेडा हरियालाग्राम)। १. मोहनलाल दलीचंद देसाई...- जैन गुर्जर कवियो भाग ३ प० १२०३-४ (प्र० सं०) और भाग ४ पृ० २६५-६६ (न० सं०)। २. वही भाग ३ पृ० १२१५ (प्र० मं०) और भाग ८ पृ० २९९ (न० मं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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