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उदतचन्द मथेन
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विशेषतया जैन यतियों के लिए। इस जैन कवि ने रूढ़ि से आगे बढ़कर गजल लिखी और रीतिकाल की माँग के अनुसार रीति ग्रंथ भी लिखा। इस गजल में बीकानेर नगर का सुन्दर वर्णन है और यह 'वैचारिकी' पत्रिका के बीकानेर विशेषांक में प्रकाशित हो चुकी है।' यह रचना सं० १९६५ चैत्र में की गई थी, इसकी कुछ पंक्तियाँ
बीकानेर सहर अजव है रे च्यार चक में ताको प्रसिद्धी लीनी। उदयचन्द आणंद सुं यूं कहे रे, भले चातुर लोक कै चित्त भीनी। चक च्यारे नवखण्ड में रे प्रसिद्ध बधावो बीकानेर ताईं। छत्रपति सुजाणसाह जुग जीवो, जाके राज में बाजे नौबत याई ।
इससे यह लगता है कि वे सुजान सिंह के भी कृपापात्र थे, या उनके शासनकाल में रचनाशील थे। रचनाकाल इस प्रकार बताया है
संवत सतरे से पैसठ रे मास चैत में पूरी गजल कीनी मात सारदा के सुपसाय सुं रे मुझे खूब करण कीमति दीनी । मनरंग सं खूब बनाय केरे, सूणाय के लोक में स्याबास पाई। कवि चंद आणंद सु यूं कहे रे, गिगड़बूं गिगड़y गजल
__ खूब गाई ॥ उदयचंद -ये अंचलगच्छीय विनयचंद के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७१४ फाल्गुन शुक्ल शनि को 'माणिककुमर की चौपइ' पूरी की। गुरु परम्परान्तर्गत इन्होंने कल्याणसागर>अमरसागर>विनयचंद का उल्लेख किया है और स्वयं को विनयचंद का शिष्य कहा है, यथा
विनयचंद शिष्य इम भणइ अ, उदयचंद आणंदि,
सयल सिद्धि आवी मिलइ अ, जिउ माणिक नरिंद । रचनाकाल--संवत सतर च उदोतरइ अ, शुदि फागण सुभ मासि
शनि रोहणी सुभ घड़ी ओ, कीउ संबंधि उलासि । १. अगरचन्द नाहटा... राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २७६ । २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई ----जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० १४१४
(प्र०सं) और भाग '५ पृ० २३०-२३१ (न० सं०) ।। ३. वही, भाग ३ पृ० १२०३-०४ (प्र० सं०) और भाग ४ पृ० २६५-२६६ __ (न० सं०)।
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