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उदयरत्न
आदि -- रमज्योति परकासकर, परम पुरुष परब्रह्म,
चिद्रूपी चित्त मांहि घरूँ, अकल स्वरूप अगम्य । मरस कथा रस केलवं पामी पास पसाय, संबंध जंबु स्वामी को कथावंध कल्लोल । चित्तशुं श्रवणे चाखतां अभिनव अमृत घोल भर यौवन मांहे भामिनी, आठ तजी मद मोड़ि।
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नवरस सरस संबंध मनोहर, ओ मे रास बनाया जी। चतुर तणी करि चउस्ये ओ तव,
लहिस्ये ओ मल सवाया जी' । रचनाकाल-संवत मत्तर उगुण पंचामि, द्वितीय भाद्रपद मांसि जी ।
मित तेरसि सदा सुभदिवसे, रासरच्यो उल्लासि जी। गुरु परंपरान्तर्गत कवि ने उपरोक्त आचार्यों की विस्तृत नामावली दी है। अन्त में लिखा है---
ढाल छासठिमी राग धन्यासी पूरण पूजी आसो जी,
उदयरत्न कहें श्रवणें सुणतां, कमला करे घरिवासो जी। अष्टप्रकारी पूजा (७८ ढाल सं० १७५५ पोष शुक्ल १०, अणहिलपुर, पाटण) आदि-अजर अमर अकलंक जे अगम्य रूप अनंत,
अलष अगोचर नित नमुंजे परम प्रभुतावंत । रचना का विषय और रचनाकाल ---
अर्चा अरीहंत देव नी अष्ट प्रकारी जेह, भावभेद यूगति करी विधिशं वषानुं तेह। संवत मतर पंचावना वर पोस मासई मनु भाया, रविवासरे दममी दिवसई पूरण कलस चढाया रे ।
१. मोहनलाल दलीचंद देसाई . जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ३८६-८१४;
भाग ३ पृ० १३४९-६५ (प्र० सं०) और भाग ५ पृ० ७६-११४ (न०सं०)।
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