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आणंदमुनि
૪૧ ___ आणंदनिधान - आप खरतरगच्छ की आद्यपक्षीय शाखा के मतिवर्द्धन के शिष्य थे। आपने मौन एकादशी चौपइ सं० १७२७ जोधपुर; कुलध्वज चौपइ सं० १७३४ सोजत; कीर्तिधर सुकोशल चौढालिया सं० १७३६ वगडी और देवराज वच्छराज चौपइ सं० १७४८ वैशाख शुक्ल को सोजत में लिखी ।' आपकी रचनायें कई हैं जिससे आप समर्थ कवि प्रतीत होते हैं; पर खेद है कि आपकी रचनाओं का उद्धरण और विवरण प्राप्त सूत्रों से उपलब्ध नहीं हो सका अतः आपकी रचनाओं का विवरण नहीं दे सका।
प्राणंदमुनि--आप लोकागच्छीय शिवजी के शिष्य त्रिलोक गणि के शिष्य थे। इनकी कई कृतियाँ प्राप्त हैं जिनमें गणित विषयक रचना 'गणितसार' सं० १७३१ लालपुर में रची गई थी। इसके अलावा हरिवंश चरित्र नामक विशाल रास ४ खण्डों में सं० १७३८ में राधनपुर में इन्होंने पूरा किया था।
गणितसार सं० १७३१ श्रावण, लालपुर ( दिल्ली) औरंगजेब के शासनकाल में लिखी गई थी; कवि ने लिखा है--
दल्ली जहांनाबाद बषाण, अवरंगसाह छत्रपति जाण । लोक बसे निज सुखिया सहु, पर उपगार करे ते बहु ।
आश्चर्य है कि जिस बादशाह को लोग कट्टर मुसलमान, मूर्तिभंजक और क्रूर कहते हैं आणंद मुनि ने उसके शासन को लोगों के लिए सुखकर बताया है। हो सकता है कि इसके दो कारण रहे हों, पहला तो यह कि सामान्यतया सभी शासकों और राजा-रजवाड़ों से जैनसंघ का प्रायः अच्छा संबंध रहा है इसलिए औरंगजेब से भी ठीक रहा हो; दूसरे लोकागच्छ के लोग भी मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करते थे, इसलिए औरंगजेब के मूर्तिभंजक स्वभाव से उन्हें परेशानी न मालम पड़ी हो । कवि ने काजी, कोटवाल
और अदालत के अधिकारी शेखसुलेमान तथा मीर हुसेनी की भी प्रशंसा की है और बताया है कि वे लोग वादों का निपटारा शीघ्र और न्याययुक्त करते थे, यथा१. श्री देसाई-जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १२४५ (प्रथम संस्करण) __ और अगरचन्द नाहटा-परंपरा प० १०९ २. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० ११३
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