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________________ ५०८ अन्त संघरुचि - तपागच्छीय हर्षरुचि आपके गुरु थे । आपने सं० १७१२ में ३२ कड़ी की एक रचना 'पार्श्वनाथ नो छंद' नाम से की। इसका रचनाकाल इन पंक्तियों में बताया गया है- आदि ---- महगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तपगछपती दीपइं श्री विशाल सोम सूरिंद, अहनिस ध्यान पांमइ परिमाणंद | रवि मुनि शशि संवच्छर रंगे जयदेव सूर मां सुख संगे, जय शंखपुराभिध पार्श्वप्रभो, सकलार्थ समीहित देहि विभो । बुध हर्षरुचि विजयाय मुदा, तप लब्धि रुचि सुखदाय सदा । जय जय जगनायक पार्श्व जिन, प्रणताखिल जिन शासन मंडन स्वामि जयो, मानव देव गतं, तुम दरसिन देखि आनंद भवो । इसकी अंतिम पंक्तियाँ निम्नांकित हैं- गुर्जर जनपद मांहे राजे, त्रिभुवन ठकुराइ तुम छाजे, इम भाव भले जिनवर गायो, बामासुत देखि बहु सुख पायो । * सकलचंद्र - गुरुपरम्परा अज्ञात है । इनकी एक रचना का केवल नामोल्लेख श्री देसाई ने किया है, वह है 'सुरपाल रास'' यह रचना सं० १७१७ की है । अन्य विवरण नहीं दिया है । सकलकोति शिष्य - पता नहीं ये 'सुरपाल रास' के कर्त्ता सकलकीर्ति हैं या कोई अन्य । उनके शिष्य का नाम भी अज्ञात है । इनकी रचना ज्ञात है 'बार आरा नी चौपाई '; यह २११ कड़ी की रचना है और सं० १७३४ से पूर्व की रचित है । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार है- Jain Education International १. मोहनलाल दलीचंद देसाई -- जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० ११३९ ( प्र०सं० ) और भाग ४, पृ० ७८-७९ ( न०सं० ) । २. वही भाग २, पृ० १५० ( प्र०सं० ) । ३. वही भाग ३, पृ० १२१२ (प्र०सं०) और भाग ४, पृ० २८४ (न० सं०) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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