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________________ अमरचंद धीगडमल्ल धर्मधुरंधर, पाटोधर पुण्यवंतो जी। सूर कल्याण नो शिष्य सवाई गुणसागर मतिवंतो जी, तसि पषि में महाव्रतधारी वाचक श्री हितकारी जी, रयणचंद सूनाम अनोपमबहला तप व्रतधारी जी। शिष्य तसु नामे सुविनीता श्री मुनिचंद मतिवंताजी, नाम लेयंते पातिग नासे, भागे मन की चिंता जी।' यह रचना शा खीमसी प्रेम जी द्वारा प्रकाशित की जा चुकी है। अमरपाल-आपका जीवनवृत्त या विशेष परिचय नहीं उपलब्ध है । आपकी एक रचना आदिनाथ के पंचमंगल सं० १७७२ की बताई गई है। उससे यह भी पता लगता है कि आप गंगवाल गोत्रीय खंडेलवाल वैश्य थे तथा देहली के निकट जयसिंहपुर में निवास करते थे। अमरविजय (गणि) या अमरगणि-आप १८वीं के उत्तरार्द्ध और १९वीं शती के प्रथम दशक के कवि हैं। आपका रचनाकाल सं० १७६१ से १८०६ तक ज्ञात होता है। आप खरतरगच्छ के जिनरत्नसूरि के पट्टधर जिनचंद्र सूरि के शिष्य महोपाध्याय उदयतिलक के शिष्य थे। आपकी पच्चीस रचनाओं की सूचना श्री अ० च० नाहटा ने दी है-- भावपच्चीसी १७६१ (गाथा २६); सम्मेतशिखर स्तवन सं० १७६२ फाल्गुन शुक्ल १४; संघसहयात्रा, पार्श्वस्तवन सं० १७६२ और १७६६; सिद्धाचलतीर्थस्तवन सं० १७६९; अरहन्ना संञ्झाय १७७०; मेघकुमार चौढालिया सं० १७७४ बगसाऊ, मुच्छमाखण कथा सं० १७७५; सुमंगलरास, मेतार्य चौपइ १७८६ सरसा; रात्रि भोजन चौपइ १७८७ नायासर, जैसलमेर स्तवन १७८७; लोद्रवा स्तवन १७८७; सुकमाल चौपइ १७९० आगरा; सुकोमल संञ्झाय १७९०; सुप्रतिष्ठ चौपइ १७८७ राजपूर; सूदर्शन चौपइ १७९८ नायासर; पूजाबत्तीसी सं० १७९९ फलौंदी; समकित ६९ बोल संझाय १८००; उपदेश बत्तीसी १. जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ३७३ (प्रथम संस्करण) और भाग ५ पृ० ४९-५० (नवीन संस्करण) २. संपादक-कस्तूरचन्द कासलीवाल- राजस्थान जैन शास्त्र भंडारों की ग्रंथसूची भाग ४ पृ० १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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