________________
मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
प्रमर कवि - आप अभयसोम के गुरु भाई थे अर्थात् सोमसुन्दर के शिष्य थे । आपकी रचना '२४ एकादशी प्रबन्ध' सं० १७११ में लिखी गई थी । यह 'राजस्थानी वृत्त कथायें' नामक पुस्तक में प्रकाशित है ।" इस कृति का विशेष विवरण नहीं प्राप्त हो सका ।
३४
अमरचंद --अंचलगच्छ की विधि शाखा के अमरसागर> >गुणसागर पक्ष के रयणचंद > मुनिचंद के आप शिष्य थे । इनकी वृहद् रचना 'विद्याविलासचरित्र' या पवाडो ३ खण्डों में विभक्त है । इसे अमरचंद ने सं० १७४५ भाद्र शुक्ल ८ भृगुवार को राधनपुर में पूर्ण किया था ।
सवत
अ अधिकार में अहवो गायो, श्री संद्यतणे मनि भायो जी । अमरचंद ये संघ आसीसा, हो जो सुजस जगीसा जी । १७४५ भाद्रपदमास सुहर जी, शुदि अष्टमी सोहे भृगुवारे रास रच्योराधणपुरें रंगिसुं गायो, श्रीसंघ थयो सवायो जी | = = हितकारे जी । पाँच से सवा चोपाई अनुमाने, रास में ते कहायोजी । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-
सकल सुखदायक सदा प्रणमुं जिनवर पास । समरु सरसति सामिनी, वर दे मुझ सुविलास ।
इसमें विद्याविलास की कथा को प्रमाण बनाकर दान का महत्व समझाया गया है-
गुरु प्रणमुं गिरुआ ध्रुवां ज्ञान दृष्णि गुण जांण । दानतणां फल वर्णतां वर दे मुझ हे वाणि । पुन्य थकी ऋधि पामिई, पुन्ये बहुला पुत्र । पुन्ये माने पंचजन, साखि अहनो सुत्र । गुरुपरंपरा - विधिपक्ष नो राजीओ श्री अमरसागरसूरि जांणो जी, तप तेज दिवाकर ते तपे, मुझ जंपे अमृत वाणो जो ।
१. अ० च० नाहटा - - परंपरा पृ० ८९
२. मो० द० देसाई - जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ३७३ प्र० सं० ३. वही, भाग ३ पृ० १३८८ प्र० सं०
४.
वही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org