SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभयसोम देखी महिमा साँच तणइ करइ, संसार ना ते सुख पामी सयल भवसागर तरइ । रचनाकाल-संवत सतवीसै धुरै, सुदि आषाढ़ बीजा दिन गुरइ ।' यह रचना राजस्थान भारती भाग १२ अंक १ में प्रकाशित हो चुकी है। वस्तूपाल तेजपाल चौपइ--(सं० १७२९ श्रावण) इसमें वीरधवल के प्रसिद्ध अमात्य बन्धुओं का यशोगान किया गया है जिनसासन जगि सोहकर, वस्तुपाल तेजपाल । ते हूँआ इण पंचमइ, कहिसुं बात रसाल ।। इन दोनों मंत्रिवरों की जीवनी पर आधारित अनेक जैन रचनायें उपलब्ध हैं । इसके अंत में अभयसोमजी लिखते हैं-- पोरवाड बंसै धीगे धडे, कुण जगि कीजै अहनी समवडै । गुरुमुखि संभलि लोकमुषै सुणी, चरित थकी पिण रास कह्य भणी। अर्थात् इनके समान अन्य कोई नहीं हुआ, इनके चरित्र की चर्चा समाज में व्याप्त है जहाँ से कवि ने भी सुनी थी। इसका रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है-- कह्या इ भणिनै रास रंगै, सतरह से गुणतीस । श्रावणै खरतरगच्छ सोहै, श्रीजिणचंद अधीश ओ । इन्होंने अपनी कई रचनायें अपने प्रिय शिष्य मतिमंदिर के लिए बनाई थी जैसा कि इन पंक्तियों से प्रकट होता है - वाचनाचारिज सोमसुन्दर अभयसोमै उपदिसी, ओ कथा सुन्दर मतिसुन्दर, सगुणने हीय. वसी । कुछ रचनाओं की इन बानगियों के आधार पर निस्संकोच कहा जा सकता है कि अभयसोम इस शती के एक समर्थ कवि और प्रभावशाली साधु थे। १. श्री देसाई-जैन गुर्जर कविओ भाग ४ पृ० १८२ (नवीन संस्करण) २. वही भाग ३ प. ११९५-९९ (प्रथम संस्करण) ३. वही भाग ४ पृ० १८४ (न० संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy