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वृद्धि विजय
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आदि-- सरसती सरसती देवी, सेवी श्री गुरु पाय रे, वीर जिणंद थूणस्यूं गुणखांणी, जाणी वाणी पसाय रे ।
सद्गुरु सांचो तुम्ह उपदेश रे । रचनाकाल--
संवत सतर तेरोत्तरा कार्तिक द्वितीया गुरुवार,
श्री घोघा वंदिर जिन स्तवीयो, नवखंड पास आधार रे ।' चौबीसी--इसमें चौबीस तीर्थङ्करों की स्तुतियाँ हैं। प्रथम तीर्थकर की स्तुति से सम्बन्धित दो पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं--
प्रेमइ प्रणमुं रे प्रथम जिणेसरु, आदिसर अरिहंत, इसकी अंतिम पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं--
श्युं कहुं प्रभु तुझ आगलि, तु दिला जाणइ छइ देव,
वृद्धिविजय कहइ माहरइ, होयो तुझ पद सेव । आपने अधिकतर भक्तिपरक स्तवन और स्तुतियां ही लिखी हैं। इनकी रचनाओं पर भक्ति परम्परा का प्रभाव पर्याप्त पड़ा था। .. आपकी गद्य रचना 'उपदेश माला बालावबोध (सं० १७३३,२ आसो १५ गुरु, सूरत) इसकी संस्कृत में लिखित पुष्पिका से पता चलता है कि यह रचना सं० १७३३ में यशोविजय जी के प्रसाद से निर्मित हुई थी। इसके गद्य का नमूना नहीं प्राप्त हो सका।
वेणीराम - आप आद्यपक्षीय शाखा के साधु दयाराम के शिष्य थे। पीपाड़ (जोधपुर) के जागीरदार माधोसिंह राठौड़ आपके प्रशंसक एवं आश्रयदाता थे। इन्होंने प्रसिद्ध चारण भक्तकवि ईसरदास के 'हरिरस' से प्रभावित होकर 'गुण जिनरस' की रचना की। इसका रचनाकाल संदिग्ध है क्योंकि रचनाकाल जिन शब्दों में बताया गया है इससे सं० १७९९ और सं० १७६९ दोनों तिथियों का बोध होता है । संबंधित पंक्तियाँ देखें१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० २५०-२५२
(न०सं०)। २. वही भाग ", पृ० १५०-१५२, ५९१ और भाग ३ पृ. ११९५-१२००,
१६२७-२८ (प्र०सं०) और भाग ४ प० २५०-२५२ (न०सं०) ।
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