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________________ ४९४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रचनाकाल अंत में है इम थुण्यो भगति शास्त्र जुगति पास शंखेसर वरु; सत्तर त्रीसइ भाद्रवा सुदि पंचमी दिन मनहरु । पंडित श्री धीरविजय गणि, चरणपंकज मधुकरो, लाभविजय कवि सीस पभणइ, वृद्धिविजय शिवसुखकरो।' वृद्धिविजय II - आप तपागच्छीय विजयराजसूरि>धनहर्ष> सत्यविजय के शिष्य थे। आप अच्छे साधु के साथ अच्छे कवि भी थे। आपकी अनेक रचनाएँ उपलब्ध हैं। जीवविचारस्तवन, त्रिषष्टि शलाका पुरुषविचार स्तवन, नवतत्वविचार स्तवन और चौबीसी आदि के अलावा आपने गद्य में उपदेशमाला बालावबोध भी लिखा है। जीवविचार स्तवन ( सं० १७१२, आसो सुदी दशमी, शनिवार ) का रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है संवत ससी सागर चन्द्रलोचन स्तव्यो, आसो सुदी दशमी रविवार राजइ । इसमें गुरुपरंपरा वही बताई गई है जैसा ऊपर लिखा जा चुका है। इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ देखें श्री सरस्वती रे वरशति वचन विलास रे, थुणस्युं त्रिभुवन रे तारण श्री जिनपास रे; . सुणो समरथ रे सुंदर श्री जिनदेव । त्रिशष्टि शलाका पुरुषविचार स्तवन (१७१२) में रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है संवत शशी सायर खीइं जिनस्तवीया कर जोडी कवीइं, भगइ गुणइ जे सांभल इ, तस घर आंगणि सुरतरु फलिय । नवतत्व विचार स्तवन (९५ कड़ी सं० १७१३ कार्तिक शुक्ल २ गुरु, घोघाबंदर) १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० २७०-२७१, भाग ३, पृ० १२७२-७३ (प्र० सं०) और भाग ४, पृ० १४८-१४९ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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