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________________ (उपाध्याय) विनयविजय ४६७ थे और दादा मुहम्मदशाह के वजीर रह चुके थे। इनके एक भाई गोपाल जी इनसे पूर्व ही हीरविजय से दीक्षित हो चुके थे और उनका नाम सोमविजय पड़ा था । इन्हीं की प्रेरणा से कल्याण जी ने भी दीक्षा ली और नाम कीर्तिविजय पड़ा। इन्हीं कीतिविजय के शिष्य विनयविजय तथा यशोविजय थे। विनयविजय के पिता का नाम तेजपाल तथा माता का नाम राजश्री था। इन्होंने यशोविजय के साथ काशी आकर संस्कृत और न्याय आदि की प्रगाढ शिक्षा प्राप्त की थी। अतः इन्होंने संस्कृत में ग्रंथ रचनायें भी खब की जिनमें महाग्रंथ 'लोकप्रकाश' भी है। यहाँ उनकी मरुगुर्जर (हिन्दी) रचनाओं का परिचय संक्षेप में दिया जा रहा है। इन्होंने अनेक स्तवन लिखे हैं जैसे पंचकारक स्तवन या पंच समवाय स्तवन अथवा स्याद्वादसूचक महावीर स्तवन (५८ कड़ी सं० १७२३), पुण्यप्रकाश (आराधना) नं स्तवन अथवा महावीर स्तवन १९२९, रानेर, उपधान (लघु) स्तवन अथवा तपविधि स्तवन अथवा महावीर स्तवन, गुणस्थानक वीर स्तवन, छः आवश्यक स्तवन, आदिनाथ विनति अथवा शत्रुजय मंडन ऋषभ जिन विनति आदि। इनमें प्रायः महावीर, ऋषभ आदि तीर्थङ्करों का स्तवन है। इनमें से एक दो के नमूने प्रस्तुत किए जा रहे हैं, यथा; पंचकारण स्तवन का आदि-- सिद्धारथ सूत वंदीई, जगदीपक जिनराज वस्तु तत्व सब जांणीई, जस आगम थी आज। इसी क्रम में 'पुण्य प्रकाश नुं स्तवन' की अंतिम पंक्तियां भी प्रस्तुत हैं। इसका रचनाकाल सं० १७२९ रानेर, विजयादशमी बताया गया है। नरभव आराधन सिद्धि साधन सुकृत लील बिलास अ, निर्जरा हेतें तवन रचिऊं, नामे पुण्य प्रकाश मे। इन सभी स्तवनों में गुरुपरंपरान्तर्गत ही रविजय और कीर्तिविजय की वंदना है। इस स्तवन का उल्लेख 'आराधना स्तवन' के नाम से विजयसूरि कृत बताकर डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल ने ग्रंथ सूची में भी किया है। उन्होंने भी उपयुक्त रचनाकाल बताया है।' १. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल ----राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की ग्रन्थ सूची, भाग ३, पृ० १००-१०१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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