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________________ ४६८ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास स्तवन के अतिरिक्त संञ्झाय संज्ञक अनेक लघु रचनायें भी आपने रची है यथा पंचखाण नी सं०, इरियावही सं०, आंबिल सं०, भगवती सूत्र संञ्झाय आदि; इनमें से भी उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं। भगवती सूत्र की पंक्तियाँ देखें वंदि प्रेमस्युं रे, पूछे गौतम स्वाम, वीर जिनवर हितकारी रे, अरथ कहे अभिराम रे । भविक सुणज्यो भगवइ अंग, मन आणी उछंग रे। आपकी प्रसिद्ध रचना (संकलन) विनय विलास और बीसी, चौबीसी आदि की चर्चा पहले की जा चुकी है। इनकी प्रायः सभी छोटी रचनाएँ 'विनयसौरभ' नामक संग्रह में प्रकाशित है। वैसे तो इनकी सभी रचनायें कई स्थानों से प्रकाशित हो चुकी हैं। नेमिराजुल के मार्मिक आख्यान पर इनकी कई रचनायें हैं जिनमें नेमिनाथ भ्रमर गीता मुख्य रचना मानी जाती है। यह २७ कड़ी की रचना सं० १७०६ भाद्रपद में रचित है। इसकी भी दो पंक्तियां प्रस्तुत हैं --- मुनि मन पंकज भमर लो, भव भय भेदणहार, भमर गीत टोडर करी, पूजू बंधु मोरारि ।' इस विषय पर इनकी दूसरी रचना नेमिनाथ बारहमास स्तवन है। साहित्यिक कृतियों के अतिरिक्त आपने क्लिष्ट विषयों जैसे व्याकरण, न्यायशास्त्र आदि पर भी अनेक रचनायें की हैं, साथ ही लोकप्रिय आख्यान, संञ्झाय, स्तवन, भास आदि विविध काव्यरूपों और शैलियों में प्रचुर साहित्य की सर्जना की है जो इनकी अद्भुत प्रतिभा का स्वतः प्रमाण है। __ पट्टावली संञ्झाय आपकी विशिष्ट कृति है जिसमें महावीर से लेकर इन्द्रभूति, सुधर्मा, हीरविजय और गोपाल, कल्याण (कीर्ति विजय) तक का सादर स्मरण किया गया है। इसमें कल्याण के दीक्षा का वृत्तान्त भी वर्णित है । इनके दीक्षा लेने की बात सुन माँ-बाप बड़े १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० ७ से २७ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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