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________________ ४६५ (बालचन्द) विनयलाभ वछराज देवराज चौपाई अथवा रास (४ खंड ६२ ढाल सं० १७३० पौष कृष्ण २, सोमवार, मुलतान) का आदि-- परम निरंजन परम प्रभु, परमेश्वर श्री पास, सो साहिब श्री नित समरतां, अविहड पूरे आस । वछराज का चरित्र पुण्य के आदर्श-दृष्टांत रूप में चित्रित किया गया है । अपने श्रेष्ठ आचरण से अकबर को प्रसन्न करके युगप्रधान जिनचंद्र द्वारा जीवदया सम्बन्धी फरमान प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम उनकी वन्दना की गई है, तत्पश्चात् सुमतिसागर, साधुरंग और विनयप्रमोद का सादर स्मरण किया गया है। इसमें रचनाकाल दर्शाने वाली पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं - संवत (सत्तर) समै सैतीसे पोस मास बदि बीज, तिण दिन कीधी चौपइ सोमवार तिम हीज । यह रचना कवि ने अपने शिष्य सुमतिविमल के आग्रह पर की। अंत में कहा है-- अधिक जइ सहु जंजाल है, इम विनयलाभे कहे, भविक नर फूले फले मंगलमाल लहे । सिंहासन बत्रीसी अथवा विक्रम चौपाई (३ खंड ६८ ढाल सं० १७४८ श्रावण कृष्ण, सप्तमी, फलौधी) का आदि-- आदि जिणेसर आदि दे, चउवीसे जिनचंद, कर जोड़ी भावे करी, नमतां परमानंद । इसमें भी जिनचंद की अभ्यर्थना है, यथा सुरप्रधान जिनचंद यतीसर, बड़भागी विरुदा जे, जसु दीदार देखि दिल्लीपति, अकबर साहि निवाजे । रचनाकाल संवत सतर समै अडताले, श्रावण वदि सातम साजे, फलवधिपुर श्री रिषभ जिणेसर, सानिधि अलिय विघन ताजे । यह रचना गच्छेश जिनचंद सूरि के आदेश से की गई थी। कवि ने कहा है-- तसु आदेश विशेष सुकृत फल लहिवा पर निज हित काजे, ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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