SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 481
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रोहा कथा चौपाई (६ ढाल) में रचनाकाल नहीं है। ध्यानामृत रास, मयणारेहा रास भी आपकी प्राप्त रचनायें हैं किन्तु इनका प्रकाशन सम्भवतः नहीं हुआ है। नेमिनाथ और राजुल की कथा पर इनकी दो सरस रचनायें उपलब्ध हैं एक है 'नेमिराजुल बारहमासा' और दूसरी है 'राजुल रहनेमि संञ्झायः । ये दोनों रचनायें विनयचंद्र कृति कुसुमांजलि में प्रकाशित है । प्रथम रचना की अंतिम पंक्तियाँ निम्नाङ्कित हैं-- इम भांति मन की खाति, बारह मास विरह विलास, करिके प्रिया प्रिय पास, चारि ग्रह्यौ अति उल्हास । दोउ मिले सुंदर मुगति मंदिर, भद्र जहाँ अति नंद, मृदु वचन रच ही भाखत, विनयचंद कवीन्द ।' यह रचना 'जैन ज्योति' ज्येष्ठ १९८८ के पृष्ठ २९२-९३ पर भी प्रकाशित हो चुकी है। द्वितीय रचना 'श्वेतांबर जैन' पत्र ता० १३-६-२९ के अंक में भी प्रकाशित हुई है। रोहा चौपाई और मयणरेहा रास के कर्त्ता ये ही विनयचन्द थे अथवा दूसरे कोई विनयचन्द थे, यह विवादास्पद होने से उनका विवरण-उद्धरण नहीं दिया गया है। अगरचंद नाहटा रोहा चौपाई का कर्ता स्थानकवासी विनयचंद को मानते हैं और मयणरेहा को अनोपमचंद के शिष्य विनयचंद की रचना मानते हैं। यह प्रश्न विचारणीय है। (बालचंद) विनयलाभ--आप खरतरगच्छीय सुमतिसागर > साधुरंग > विनयप्रमोद के शिष्य थे। वच्छराज देवराज चौपाई, सिंहासन बत्तीसी चौपाई, सवैया बावनी और १४ स्वप्न धवल आपकी प्रमुख काव्य कृतियाँ है। इनके अतिरिक्त इन्होंने भर्तहरिशतकत्रय का हिन्दी पद्यानुवाद भी किया है। इनका अपरनाम बालचंद था। इनकी रचनाओं का परिचय उद्धरण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ४२३-२४ और वही भाग ३, पृ० १३७०-१३७५ (प्र०सं०) और भाग ४, पृ० १२६-१३२ (न०सं०)। २. वही भाग २ प० ३४६-३४९ एवं भाग ३, पृ० १३१९-२१ (प्र०सं०) और भाग ४, पृ० ४३०- ४३४ (न•सं.)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy