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________________ अभयसोम __अभयसोम-खरतरगच्छ के सातवें जिनचंद्र सूरि के शिष्य सोमसुंदर आपके गुरु थे । आपकी निम्नांकित रचनायें प्राप्त हैं___ वैदर्भी चौपइ चैत्र पूर्णमासी सं० १७११, चंद्रोदय कथा चौपइ सं० १७२० नवसर, जयंती संधि सं० १७२१, खापरा चोर चौपइ १७२३ सिरोही, विक्रम लीलावती चौपइ सं० १७२४, मानतुंग मानवती चौपइ सं० १७२७, वस्तूपाल तेजपाल चौपइ सं० १७२९, गणावली चौपइ सं० १७४२ सोजत, पार्श्वनाथ छंद, दादागुरु छंद ।' इनमें से प्रमुख रचनाओं का परिचय सोदाहरण दिया जा रहा है। वैदर्भी चौपइ का रचना काल इस प्रकार बताया गया है, संवर सतर अग्यारोतरइं जी रे चैत्री पुनिम मान । गुरुपरंपरा-षरतरगच्छइं सोहग संपदाजी जिनचंद चढतइं वान । सोमसुंदर गुरु सुपसावलइं जी रे, कहिय कथा भरपूर अभयसोम श्री संघनइ रे, मंगल करै सनूर। . इसमें श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न की पत्नी वैदर्भी के रूप-गुण के साथ शील का वर्णन मुख्यरूप से किया गया है, यथा-- यादवकुल मंडण जयो, किसन प्रजून कुमार, तास त्रिया गुण वरणवू, वैदरभी विस्तार । इस चौपइ का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है-- पास जिणेसर परगडो, दोलित नो दातार, फलवधि तो द्यइं फलवधि, नाम जपइ निरधार ।२ विक्रमचरित पर इनकी दो रचनाये हैं प्रथम विक्रमचरित्र खापरा चौपइ (२८ ढाल २८८ कड़ी सं० १७२३ ज्येष्ठ, सिरोही) का रचनाकाल कवि ने इन पंक्तियों में लिखा है... सत्तरह से तेवीसे समेजी, जेठ मास जगिसार। सीरोही नगर सुहामणो जी, चरित कीयौ सुखकार । १. श्री अगरचंद नाहटा---परंपरा प० ९८ २. श्री देसाई --- जैन गुर्जर कविओ भाग २ १० १८२ (प्रथम संस्करण) और भाग ४, पृ० १७८ न० सं० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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