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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अभयकुशल--खरतरगच्छ की कीर्तिरत्न सूरि शाखा के संत ललितकीर्ति के शिष्य पुण्यहर्ष आपके गुरु थे। आपकी 'ऋषभदत्त रूपवती चौपाई' और 'विवाहपटल भाषा' नामक दो रचनाओं का उल्लेख मिलता है। प्रथम कति की रचना सं० १७३७ फाल्गून १० को महाजन नगर में हुई जो निम्न उद्धरण से प्रमाणित होता है
संवत् मुनि गुण ऋषि शशि अ, फागुण मास उदार ।
उजवाली दसमी दिने अ, महाजन नगर मझार ॥' जैन गर्जर कवियों के प्रथम संस्करण में रचनाकाल १७३० बताया गया था जो उद्धत पंक्तियों को देखते हए अशुद्ध लगता है। गुरुपरंपरा से संबंधित कुछ पंक्तियाँ आगे दी जा रही हैं
कीरतिरतन सूरीदनी, शाखा सकल वदीत । ललितकीरति पाठकवरु साधु गुणे सुपवित्त । तास सीस जगि परगडा अ, बहु विद्या भंडार । श्री पुण्यहरष पाठक जयो ओ, तसु संनिधि लहिसार। अभयकुशल अ भाषिओ अ, सषर संबंध रसाल।
भणतां गुणतां वाचतां अ, बाधइ मंगल माल । विवाह पटल भाषा राजस्थानी मिश्रित हिन्दी की कृति है। यह ५६ पद्यों की छोटी रचना है। इसके अंतिम दो छंद नमूने के रूप में प्रस्तुत हैं-विवाह पटल ग्रंथ छे मोटो, कहितां कबही तावे त्रोटो।
मख लोक समझावण सारू, अ अधिकार कीयो हितकारू । पुन्यहरष वाचक परगडा, परवादी गंजण उतकटा।
तसु प्रसादे शुभमति लही, अभयकुशल वाचक मे कही। यह रचना श्री अगरचंद नाहटा संग्रह में सुरक्षित है ।
अभयचंद सूरि--आपकी एक रचना का पता चला है; वह है 'विक्रम चौबोली', इसे सूरिजी ने सं० १७२४ आषाढ़ कृष्ण १० को पूर्ण किया था। यह पद्यबद्ध कथा है। भाषा हिन्दी है और इसे कवि ने मतिसुंदर के लिए लिखा था। १. देसाई -- जैन गुर्जर कविओ भाग ३ प० १२९५-९६ (प्रथम संस्करण) २. वही भाग ५, प० २८ (न० संस्करण) ३. संपादक-कस्तूर चन्द कासलीवाल और अनूपचंद-राजस्थान के जैन शास्त्र
भंडारों की ग्रन्थसूची भाग ४, प० २४०
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