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गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
फिर वह हेमचंद्र का परिचय देता है -
कुण हेमचंद्र किहांहवा, कवण देश विख्यात् धरम तणी करणी करी, ते सुणीयो अवदात |
गुरुपरंपरा प्रथम रास में तपगच्छीय विजयरत्न > विजयक्षमा > धीर कुशल आदि की बताई है, दूसरे रास में विजयक्षमा के पट्टधर विजयदया के पश्चात् वृद्धिकुशल का उल्लेख किया गया है । उसके पश्चात् वह लिखता है --
तस पद पंकज
सीस कहाया,
वल्लभकुशल गुण गाया रे, सुहाया,
. सुख
पाया रे । इस आधार पर हेमचंद्र गणि रास का रचनाकाल १७९३ मागसर शुक्ल २, भौमवार निश्चित है । परन्तु श्रेणिक रास का रचनाकाल 'सं० १७ पंचोत्तरा वर्षे' का अर्थ भ्रामक होने के कारण देसाई ने पहले इसका रचनाकाल सं० १७०५ बताया था, पर पहिली रचना और दूसरी रचना के बीच लम्बे अंतराल को देखते हुए उसका अर्थ सं० १७७५ लगाना ही समीचीन लगता है अतः नवीन संस्करण में रचना का यही समय बताया गया है । विजयक्षमा सूरिका सूरित्वकाल १७७३ से १७८५ तक निश्चित है । इसमें (श्रेणिक रास ) विजयक्षमा का उल्लेख है अतः यह रचना सं० १७७३ से १७८५ के बीच हुई होगी । इस प्रमाण से भी इसका रचनाकाल सं० १७७५ ही उचित लगता है ।
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सतर ताणुंआ वरस सित मृगसिर
Ja 'वस्ता ( मुनि) - आपकी दो रचनाओं का उल्लेख मिलता है और दोनों प्रकाशित हैं । पहली रचना है- रात्रि भोजन संञ्झाय जो संञ्झाय माला तथा संञ्झाय स्तवन संग्रह में प्रकाशित है । दूसरी रचना का नाम है 'रहनेमि राजिमती संञ्झाय' यह भी संञ्झायमाला तथा संञ्झाय स्तवन संग्रह में प्रकाशित है । इन दोनों रचनाओं का कर्त्ता जैन गुर्जर कवियो के प्रथम संस्करण में भूलवश वस्तिग को बताया
१. जैन ऐतिहासिक गुर्जर रास संचय, पृ० २६५-२८४ । २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग २, (प्र०सं०) और वही भाग ५, पृ० २९२-९३ ( प्र०सं० ) ।
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पृ० ५२४-२६
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