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________________ लाभवर्धन पाठक ४४७ लाभवर्द्धन पाठक --- ये कविवर जिनहर्ष (खरतर) के गुरुभाई थे। इनका जन्मनाम लालचन्द था। इनकी दीक्षा १७१३ में हुई। इनकी निम्न रचनायें उपलब्ध हैं। विक्रम ९०० कन्या चौपई सं० १७२३ जयतारण; लीलावती रास सं० १७२८; विक्रम पञ्चदण्ड चौपई सं० १७३३; लीलावती गणित चौपई १७३६ बीकानेर; धर्मबुद्धि पापबुद्धि चौपई १७४२ सरसा; स्वरोदय भाषा सं० १७५३, (मूल अक्षयराज कवि विरचित), निसाणी महाराज अजित सिंह सं० १७६२ जोधपुर; पाण्डव चौपई १७६७ विल्हावास, शकुनदीपिका चौपई १७७०; अंकपाश प्रस्तार १७६१ गुडा, चाणक्य नीति टब्बा ।' लाभवर्द्धन खरतरगच्छ की क्षेमशाखा के साधरंग>धर्मसुन्दर> कमलसोम>दानविजय>गुणवर्धन>सोमगणि> शांतिहर्ष के शिष्य थे। प्रथम रचना विक्रम ९०० कन्य चौपई का रचनाकाल १७२३ या ३३ है यह संदिग्ध है। इसका अपर नाम 'खापरा चोर चौपई' भी है। इसमें २७ ढाल हैं। यह जयतारण में माघ शुक्ल बुधवार को पूर्ण हुई थी पर संवत् संदिग्ध है क्योंकि सतरें से तेवीसमें (पाठांतर) 'सतरे सै तेत्रीसे वरसे' दोनों पाठ मिलता है। मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने अपने ग्रन्थ जैन गर्जर कवियो में 'खापराचोर चौपाई का परिचय विक्रम ९०० कन्या चौपाई से स्वतन्त्र एक बिल्कुल भिन्न रचना के रूप में दिया है किन्तु यह भी आशंका व्यक्त की है कि दोनों एक ही रचना हो सकती हैं। उसे देसाई ने सं० १७२७ भाद्र शक्ल ११ जयतारण में रचित बताया है। जो हो, यह स्वतंत्र शोध का विषय है। इनकी दूसरी रचना है --- </लीलावती रास (२९ ढाल ६०० कड़ी सं० १७२८ कार्तिक शक्ल १४) इसकी चौपाई के अन्त में लाभवर्द्धन और लालचन्द दोनों नाम मिलते हैं । जैसे-- जे चतुर हुसी सो समझती, लाभवरधन वचन रसाल रे। और - पूरीय बीजा हो ढाल कही इसी जी, लालचन्द ससनेह । इसका आदि देखे-- तेतीसमो त्रिभुवन तिलो, जगनायक जिनराय, दायक शिवसुख सासतां, सेवे सुरनर पांय । १. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ९९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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