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इसमें रचनाकाल दिया गया है
अष्टशततमे वर्षे प्रमिते सप्तमोत्तरे, मार्गशीर्षे सिते पक्षे पंचम्यां भानुवासरे । इत्यादि
मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
इसके गद्य का नमूना नहीं दिया गया है, परंतु इतना स्पष्ट है कि लाघासाह गद्य-पद्य विधाओं में रचना करने में सक्षम थे ।
लाभकुशल - आप तपागच्छीय वृद्धिकुशल के शिष्य थे । आपकी रचना स्थूलभद्र चौपई (सं० १७५८, चैत्र कृष्ण १०, गुरुवार, आमेट ) के मंगलाचरण की प्रारंभिक पंक्तियाँ देखे
गुरुपरंपरा
जय जय करण जिणेसरु; त्रिसलानंदन वीर, वर्द्धमान शासनधणी, प्रणमु साहस धीर ।
रचनाकाल
कविण माहें मुकुट कहीजइ श्री वृद्धिकुशल दींव सीसोरे, मुझ भागी करि मझनइ मिलीया ओ गुरु वीसवावीसो रे । तास सीस इग लाभकुशल कवि अ रास रच्यउ कवि काजई रे, तेह तणा वली वड़ गुरुभाई राजकुशल कवि राजइ रे । गच्छनायक गुरु कहीयइं गिरुअइ विनयप्रभ सुरंदो रे, तस पटोधर गणधर जेहवो विजयरत्न मुनिंदो रे ।
संवत सतर आट्ठावन वरसइ पख कृष्ण चइत्र मास रे, बार वृहस्पति दशमी दिवसइ पूरण हूओ तिहां रास रे । "
कवि लालचंद लाभवर्द्धन की रचना 'पांडव चरित्र' हिन्दी पद्य में रचित महाभारत का जैन संस्करण है । इसका रचनाकाल सं० १७६८ है । इसके सम्बन्ध में अन्य विवरण नहीं प्राप्त है । ये संभवतः लाभवर्द्धन पाठक ही हैं जिनका परिचय आगे दिया जा रहा है । ये कवि लालचंद के नाम से भी कवितायें करते थे ।
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ५ पृ० ४४८-४४९ ( न० सं०) ।
२. डा० कस्तूरचंद कासलीवाल- - राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रंथ
सूची, भाग ४ पृ० ५४ ।
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