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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
रचनाकाल--
संवत सतरे से गया, वली ऊपर अट्ठावीस;
काती सूदि चवदश दिने, संपूरया सुजगीस ।' लीलावती (गणित) हिन्दी सं० १७३६ आषाढ़ कृष्ण ५, बुधवार)
आचार्य भाष्कर कृत संस्कृत ग्रन्थ लीलावती का यह भाषा पद्यानुवाद है। इसके लिए कवि ने लिखा है--
यद्यपि रचना अति भली पंडित करै वषाण, पिण कोइक समझै चतुर, जिको व्याकरण जाण ।
यह विवेक धरि चित्त मै, सुगुरु चरण सुप्रसाद,
लालचंद भाषा करै मूल शास्त्र मर याद । यह रचना बीकानेर में हुई थी जहाँ उस समय महाराज अनूप सिंह राज्य करते थे। महाराज के अधिकारी कोठारी नेणसी और उनके पुत्र जैतसी के आग्रह पर यह रचना की गई थी।
धर्मबुद्धि पापबुद्धि चौपई (३९ ढाल ५३५ कड़ी सं० १७४२ सरसा) रचनाकाल
संवत सतरै वैतालीसे, सरस सहर करी,
गुणतालीस कही गुणवंती, सरसैं ढाल सुढरी । स्वरोदय भाषा सं० १७५३ भाद्र शुक्ल को रचित है । यह भाषानुवाद है। पांडव चरित्र अथवा पाँच पांडव चौपई (१५० ढाल २७५१ कड़ी) पहले इसे मोहनलाल दलीचंद देसाई ने जिनहर्ष की रचना बताया था, पर बाद में सुधार कर लिया । यह सं० १७६७ कील्हावास में पूर्ण हई थी। यह वही रचना है जिसका उल्लेख कस्तूरचंद कासलीवाल ने किया है किन्तु रचनाकाल सं० १७६८ बताया है। इसमें रचनाकाल का पाठ इस प्रकार प्राप्त है ---
संवत सतरै सतसठ समै जी, किल्हुवास मझार । इसमें जिनसुख, साधुरंग, धर्मसुन्दर, कमलसोम, दानविजय, १. मोहनलाल दलीचंद देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० २३८
(प्र० सं०)।
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