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________________ ४४२ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भी भागचंद के परिवार का विस्तृत व्यौरा दिया गया है। इसकी एकमात्र प्रति हित सत्कार ज्ञानमन्दिर घाणेराव से प्राप्त हुई है। पद्मिनी चौपाई की रचना सं० १७०७ के पश्चात् प्राप्त प्रस्तुत रचना सं० १७३७ को देखते दोनों के बीच तीस वर्षों का लंबा अंतराल है। इस अवधि में कवि ने अवश्य कुछ रचनायें की होंगी पर वे लप्त हो गई या अब तक अनुपलब्ध हैं। श्री नाहटा का अनुमान है कि प्रथम रचना और प्रस्तुत पाँचवीं रचना के मध्य रचित इनकी तीन रचनाएँ अवश्य लप्त हैं।' मलयसुन्दरी का रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है संवत सतर त्रयाला वरसे, वदि श्रावण तेरस कीध आरंभ जी, धनतेरस संपूरण कीधी, सुणतां अधिक अचंभ प्रौढ़ोपाध्याय पदधारी, श्री लब्धोदय गुणखाणी जी, व्याकरण तर्क साहित्य छन्द कोविद, अलंकार रसि जाणी जी। इस समय तक लब्धोदय प्रौढ़ौपाब्याय हो चुके थे। वे साहित्य के विविध अंग-रस-छंद-अलंकार आदि के साथ तर्क शास्त्र, व्याकरण आदि के भी ज्ञाता थे । पर यह सब बातें स्वयं वे अपने बारे में लिखते हैं जिससे कवि की आत्मश्लाघा व्यक्त होती है जो एक निस्पृह साधु के लिए ओछी बात लगती है। जो हो लब्धोदय महोपाध्याय इस शताब्दी के खरतरगच्छीय कवियों में प्रमुख कवि हैं। गणावली चौपाई ज्ञान पंचमी व्रत पर आधारित रचना है। यह सं. १७४५ फाल्गन शुक्ल १०, उदयपुर में रचित है। यह भागचंद की पत्नी भावल दे के लिए लिखी गई। ऋषभदेव स्तवन प्रथम सं० १७१० ज्येष्ठ कृष्ण २, बुधवार और दूसरा स्तवन सं० १७३१ में लिखित है। आपकी अंतिम प्राप्त रचना गुणावली ही प्रतीत होती है जो सं० १७४५ की रचित है अतः यह भी अनुमान है कि इनकी मृत्यु सं० १७५० के आसपास हुई होगी। पद्मिनी चौपाई में यह उल्लेख है कि खरतर गच्छाचार्य श्री जिनरंगसूरि की आज्ञा से आप उदयपुर आये थे। इसके पश्चात् की रचनायें प्रायः उदयपुर, गोगूंधा और धुलेवा में रचित हैं अतः आपका १. अगरचन्द नाहटा . परंपरा पृ० ९५-९७ । २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, प० १३४-१३८, भाग ३, पृ० १९८५-८६ (प्र० सं०) और भाग ४, पृ० १५७-१६२ (न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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