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________________ लब्धोदरगणि विहार मेवाड़ प्रदेश में ही अधिक हुआ सिद्ध होता है, परिणामतः आपकी रचनाओं का कथ्य, विषय और भाषा शैली प्रायः मेवाड़ी संस्कृति और भाषा से प्रभावित है । आपकी महत्वपूर्ण रचना रत्नचूड़ मणिचूड़ चौपाई का उद्धरण नहीं प्राप्त हो सका। आपका तत्कालीन समाज, इतिहास और राजसमाज से अच्छा परिचय था । पद्मिनी चौपाई में तत्कालीन जैन धर्म और राज सत्ता के प्रधानों का परिचय प्रस्तुत किया गया है। सुधर्मास्वामी से लेकर ज्ञानराज तक की गुरु परंपरा के साथ चित्तौड़, मेवाड़पतियों का विशेषतया हिंदूपति जगत सिंह आदि का व्यौरा दिया गया है। कवि ने लिखा है - हिन्दूपति श्री जगतसिंह राणो जिहां, राज करै जग भाण । इससे प्रकट होता है कि हिन्दू धर्म और जैसे धर्म में उस समय कोई दुराव नहीं था। लाघाशाह--ये कडुवा गच्छ के अच्छे लेखक थे; इन्होंने अपनी रचनाओं में कड़वाशाह से लेकर भीम, वीरो, जीवराज, तेजपाल, रत्नपाल, जिनदास, तेजपाल, कल्याण, लघुजी और शोभणजी तक की गुरु परंपरा बताई है । ये शोभणजी के शिष्य थे। इनकी रचनाओं का परिचय प्रस्तुत है-- चौबीसी ( सं० १७६०, विजयदशमी, शुक्रवार, अहमदाबाद ) का रचनाकाल : संवत सतर साठे कविवारे, विजयदसम मन लाया, राजनगर मध्ये रहीय चोमासु, चौबीस गीत बनाया रे । यह रचना करमण शा के आग्रह पर लिखी गई थी, यथा श्री थराद नगर ना वासी, सा हीरो मन भाया, सा करमण आग्रह थी कीधां, सरस संबंध रचाया रे । अंत--अक्षर न्यून अधिक जे भाष्यु, सुद्ध करयो कविराया, साहा लाघो कहे पूरण कीधां, सारद सुगुरु पसाया रे । जंबू कुमार रास ( ३२ ढाल, सं० १७६४ कार्तिक शुक्ल द्वितीया, गुरुवार) सोही ग्राम में यह रचना की गई थी। इसमें वही गुरुपरंपरा दी गई है जो पहले बताई जा चुकी है। रचनाकाल इस प्रकार दिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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