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________________ ४२६ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास बीकानेर, अभयकुमार चौपई, महावीर गौतम छंद, भरतबाहुबलि छंद, कुंडलिया, छप्पय बावनी, राज ( चेतन ) बत्तीसी, बरकाणा पार्श्वनाथ छंद, श्री जिनकुशल सूरि छंद और कुछ स्फुट स्तवन, पद इत्यादि । मरुगुर्जर पद्य के साथ ही गद्य में इन्होंने पृथ्वीराज कृत प्रसिद्ध राजस्थानी कृति कृष्ण-रुक्मिणी री बेलि, भर्तृहरि शतक त्रय और संघपट्टक की भाषा-टीकायें लिखी हैं ।' श्री देसाई ने इनकी गुरुपरंपरा बताते हुए इन्हें जिनकुशल सूरि7 विनयप्रभ 7 विजयतिलक 7 क्षेमकीर्ति सूरि (क्षेम शाखा संस्थापक)7 तपोरत्न 7 तेजोरत्न 7 भुवनकीर्ति 7 हर्षकूजर> लब्धिमंडन> लक्ष्मीकीर्ति का शिष्य बताया है। इनकी संस्कृत टीकाओं का नाम कल्पद्रुम कलिका और उत्तराध्ययन दीपिका बताया है और इन्हें लक्ष्मीवल्लभराज-हेमराज कहा है। उन्होंने इनकी बाईस रचनाओं का विवरणउद्धरण दिया है। उसके आधार पर कुछ महत्वपूर्ण कृतियों का संक्षिप्त विवरण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है। रत्नहास चौपई ( दानशीलाधिकारे ) १२ ढाल, सं० १७२५ चैत्र शुक्ल १५, का आदि सरसति सामणि पय नमी, पामी सुगुरु पसाय, दान तणा फल दाखिस्युं, सुणउ श्रवण सुखदाय । रचना समय - संवत सतरहसइ पचवीसइ वाणी विलास बखाणी, दान कथा चैत्री पुनिम दिने, जयस खकर जिनवाणी । अन्तिम पंक्तियाँ उपाध्याय श्री लखमीकीरति शिष्य, लखमिवल्लभ मतिसारइ चोपी करी कर ढाल करि, भवियणनइ उपगारइ ।' भावनाविलास (हिन्दी, सं० १७२७ पौष कृष्ण १०) का प्रारंभ प्रणमि चरणयुग पास जिनराज जु के विधिन के चूरण हैं पूरण हैं आसके । दिढ़ दिलमाझि ध्यान धरि श्रत देवता को, सेवै ते संपूरत है मनोरथ दास के । १. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० १०० २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० ३४८ (न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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