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(उपाध्याय) लक्ष्मीवल्लभ
ग्यान दृगदाता गुरु बड़े उपकारी मेरे, दिनकर जैसे दीपैं ग्यान परकास के इनके प्रसाद कवि राज सदा सुखराज, सवी अ बनावत हैं भावनाविलास के 1
इसमें प्रत्येक भावना का वर्णन आगे दिया जा रहा है
किया गया है । रचना का समय
द्वीप युगल मुनि शशि १७२७ वरसि, जा दिन जनमे पास; ता दिन कीना राजकवि, यह भावना विलास । यह नीकै कैं जानीयै, पढ़ीये भाषा शुद्ध,
सुख संतोष अति संपजै, बुद्धि न होय विरुद्ध ।
सवैया बावनी (हिन्दी, ५८ कड़ी) सं० १ ३८ मागसर शुक्ल ६, को पूर्ण हुई । विक्रमादित्य पञ्चदण्ड रास अथवा चौपाई ( ६ खण्ड ७५ ढाल, ३१६८ कड़ी, सं० १७२८ फाल्गुन शुक्ल ५ ) का आदि निम्नवत् है-
प्रणमु' पास जिणंद पाय कलियुगि सुरतरुकंद, सेव करइ नित जेहनी, पदमावति धरणिद ।
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इसमें प्रसिद्ध महाराज विक्रमादित्य का चरित्र गान किया गया है, यथा-
कहिसु विक्रमराय नो चारित महागुण चंग, सुतां श्रुतसुख ऊपजे जिहां नवरस बहु रंग ।
रचनाकाल -- सिद्धि नेत्र मुनि शशहर वरषे, फागुण शुदि पञ्चमि मन हरषै ।
इसकी लोकप्रियता का अनुमान विभिन्न ज्ञान भण्डारों में प्राप्त इसकी अनेक हस्तप्रतियों की विद्यमानता से लगाया जा सकता है ।
रात्रिभोजन चौपाई (२६ ढाल, सं० 1७३८ पौष शुक्ल सप्तमी, बीकानेर)
इसमें रात्रि भोजन के दोषों को बताकर उसके त्याग का उपदेश दिया गया है ।
आदि- वरधमान जिनवर तणा, चरण नमू इकचित्त, धरम प्रकाशक जगधणी, नमता सुख द्ये नित ।
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