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________________ ४२४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास डालियानो रास (६ ढाल, १३५ कड़ी, सं० १७४१ मागसर, शुक्ल १५, गुरुवार, ऊना) का आदि देखिए--- आद्य जिनेसर आद्य नप, आद्य पुरुष अवतार, भवभय भाव भगवंतनर, करुणानिधि करतार । इसमें सेठ खेमा के दान की कथा कही गई है। गुरु के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कवि ने लिखा है-- कुंभे बांध्यु जल रहै, जल बिना कुंभ न होय, ज्ञाने बांध्यु मन रहै, गुरु बिना ज्ञान न होय । इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया हैसंवत सतर अंकतालिसा वरसे, रास रच्यो मन हर जी, मागसर सुद पुन्यम गुरुवारे गाम ऊनाऊं मझार जी। गुरुपरंपरान्तर्गत कवि ने हरिरत्न की वंदना की है, यथा पंडित हीररत्न परसीध्या तस पसाय रास कीधो जी, छट्टी ढाल धनाश्री मां गाये, सांभलता सुष पावे जी । अन्तिम पंक्ति की भाषा में पंजाबीपन का पुट मिलता है, यथा __ कीजे धर्म भवक जन वृन्दा लषमीरतन कहंदा जी।' गुजरात की एक स्मरणीय दुखद घटना पर यह रास प्रकाश डालता है। जब गुजरात पर मुहम्मद बेगड़ा का राज्य था, उसी समय वहाँ भयंकर दुष्काल पड़ा। प्रजा अन्न के बिना भूखों मरने लगी, तब खेमा सेठ ने (हडाला निवासी) एक वर्ष तक मुफ्त अन्न की आपूर्ति करके लोगों का प्राण बचाया था। बेगड़ा का शासन सं० १५०२ से १५६८ तक रहा। उसने चंपानेर का किला तोड़ा था। हम्मीर के पश्चात् रामदेव ने चंपानेर को अपनी राजधानी बनाई थी । सं० १५४१ में बेगड़ा ने उसपर चढ़ाई की और उस युद्ध में जयसिंह देव वीरगति को प्राप्त हुए थे। उस समय चंपानेर ने नगरसेठ चांपसी मेहता थे । वे एक दिन जब दरबार जा रहे थे तो एक भाट ने हडाला के खेमा सेठ की विरुदावली का बखान किया। दुष्काल के समय जब सेठ को बुलाया गया तो उसने प्रसन्नता पूर्वक ३६० दिन तक लगातार अन्न १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई- जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ३६०-३६१ (प्र०सं०) और वही भाग ५, पृ० ३७-३८ (न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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