SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लक्ष्मीदास ४२३ यह ढालबद्ध रचना है। ढालों में प्रबन्ध काव्य की रचना विशेष गौरव की बात मानी जाती थी क्योंकि ऐसी रचना वही कर सकता है जो संगीत की विविध राग रागनियों और उनकी बारीकियों से वाकिफ हो। ढालों में रागरागनियों की सुमधुर गेयता संचरित होती है । श्रेणिक चरित भी गेयकाव्य है। इसकी वजभाषा में राजस्थानी का पुट भाषा शैली को स्वाभाविक एवं सरस बनाने में सहायक है। रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है-- संवत सतरा से ऊपरि तेतीस जेठ सुपाष, पंचमी ता दिन पूर्ण लहि मंगलकारो भाष ।' इनकी दूसरी रचना 'यशोधर चरित्र' जीवदया पर आधारित है। इसका रचनाकाल सं० १७८१ है, यथा-- संवत सतरा से भले अरु ऊपर इक्यासी __ (यशोधर चरित प्रशस्ति पद्य ८९३) इसमें छह संधियाँ हैं । कवि ने यशोधर के अनेक जन्मों का वर्णन करके उसके आधार पर पाप-पुण्य, हिंसा-अहिंसा आदि के परिणामों पर पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया है। इसमें कवि ने दोहा, चौपाई छन्दों के अतिरिक्त अडिल्ल, सवैया आदि अन्य कई छंदों का सफल प्रयोग किया है। श्री कस्तूरचंद कासलीवाल ने लेखक का नाम 'लिखमीदास' बताया है। इनकी रचना का समय उन्होंने भी सं० १७८१ कार्तिक शुक्ल ६ बताया है। दोनों रचनाओं के बीच अंतराल अवश्य विचारणीय है किन्तु असम्भव नहीं है। इसलिए रचनाओं और उनके कर्ता लक्ष्मीदास के सम्बन्ध में शंका की गुंजाइश अत्यल्प है। लक्ष्मीरत्न-आप हीररत्न के शिष्य थे। आपकी प्रसिद्ध रचना 'खेमाहडालियानो रास' है । इसका विवरण दिया जा रहा है । खेमाह१. डा० लाल चन्द जैन-जन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन पृ० ७०-७१ । २. वही पृ० ८२ ३. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल--राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की ग्रंथ सूची, भाग ३, पृ० २१८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy