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________________ (वाचक) रामविजय ४१३ (वाचक) रामविजय--आप तपागच्छ के युगप्रधान हीरविजय सूरि की परम्परा में कल्याण विजय>धर्मविजय>जयविजय>शुभविजय > सुमति विजय के शिष्य थे। इन्होंने प्रचुर साहित्य-सृजन किया है। ये गद्य और पद्य दोनों रूपों में साहित्य रचना कुशलता पूर्वक करते थे। गद्य में लिखित उपदेश माला बालावबोध (१७८१ माघ शुक्ल ९, कर्णभूषानगर) में ७१ उपदेशपरक कथायें हैं और उनकी टीका गद्य में है। ऐसी रचनाओं में रचनाकाल आदि संस्कृत में लिखने की परिपाटी पड़ गई थी, यथा -- संवच्चंद गजाद्रिभ प्रभुजिते वर्षे मद्यावुज्वले, सिद्धयार्थ नवमी दिने पुरवरे श्री कर्णभूषाह्वये । आपकी दूसरी गद्य रचना नेमिनाथ चरित्र बालावबोध (सं० १७८४) भी प्राप्त है, पर इनके गद्य के नमूने अप्राप्त हैं । पद्य में आपने तेजपाल रास सं० १७६०, धर्मदत्त ऋषि रास सं० १७६६, शांतिजिन रास और लक्ष्मीसागर सूरि निर्वाण रास नामक विस्तृत रचनाओं के अतिरिक्त चौबीसी तथा बीसी भी लिखा है। शांति जिनरास में हीरविजय सूरि की प्रशस्ति में उनकी दो महान उपलब्धियों का उल्लेख किया गया है। अकबर से मिलकर उसे प्रभावित करने की घटना तो सर्वज्ञात है, दूसरी घटना भी गच्छ की दृष्टि से पर्याप्त महत्वपूर्ण है। दूसरी घटना है मेघऋषि का लोकागच्छ छोड़कर हीरविजय का शिष्य होना। इस रास का रचनाकाल (सं० १७८५ वैशाख शुक्ल ७ गुरु राजगर) इस प्रकार वताया गया है संवत सतर पंचासीया वर्षे, वैशाख मास कहाया, शुदि सातम गुरु पुण्य संयोगे, पूरण कलश कढ़ाया। रचना स्थान श्री राजनगर नो संघ सोभागी, तेहने प्रथम सुणाया। ऋद्धि वृद्धि प्रगटी अधिकेरी, आणंद अधिक उपाया। इसमें गुरुपरम्परा का विस्तृत विवरण है। हीरविजय द्वारा बिंब प्रतिष्ठाओं, तीर्थयात्राओं के साथ उनका वंश-परिवार, दीक्षा, पदवी आदि का भी वर्णन किया गया है । तत्पश्चात् विजयसेन का भी जीवन परिचय दिया गया है । तदुपरान्त सागरगच्छ के संस्थापक राजसागर, वृद्धिसागर, लक्ष्मीसागर, मानविजय, कल्याणविजय, धर्मविजय, जयविजय, शुभविजय और सुमति विजय का सादर वंदन किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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