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________________ ४१२ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह रचना इन्होंने छाजड़ के मन्त्री जीवराज के पुत्र मनरूप के आग्रह पर की थी। पद्य रचनाओं में प्रयुक्त भाषा, शैली आदि का नमूना देने के लिए अब 'चित्रसेन पद्मावती रास' का विवरण-उद्धरण दिया जा रहा है । चित्रसेन पद्मावती रास (४९५ कड़ी, सं० १८१४ पोष शुक्ल १०, बीकानेर) आदि - श्री रिसहेसर पयकमल, पणमिय धरि आणंद, दान धरम गुण वरणवू सुणो सभी नरवृन्द । रचनाकाल -अठारह सौ ऊपरि वरसै, चवदोतर वहंत, पोस मास शुदि दसमी तणे दिन, रास रच्यो मनखंत । गुरुपरम्परा-- श्री जिनलाभ सूरीसर राजै, खरतर गछ बड़भागी, खेमसाख श्री शांतिहरष सिष, श्री जिनहरष वैरागी। तास सीस वाचक सुखवरधन, कलानिधान कहायां, तास सीस वाणारस पदधर, श्री दयासिंध मुनिराया। तासु चरण कमल सुपसाय, सरसति सुनिजी पाई, रामविजै उवझाय ओ चौपई, बीकानेर बणाई । इसकी अंतिम पंक्तियों में धर्म का महत्व कहा गया है और यह रचना धर्म के दृष्टान्त स्वरूप की गई है जिसमें चित्रसेन पद्मावती द्वारा धर्मपालन की मर्यादा का वर्णन है । कवि कहता है - भवियण साचौ अक धर्म भाई, भवकतार भमंता जीवनें अहिज होइ सहाई। धरम पदारथ सार जगत में जिहां तिहां ग्यानी ओ गायौ, तिण ऊपरि चित्रसेण नरिंद नौ, अ दसटांत सुणायौ।' अमरुशतक बालावबोध सं० १७९८ आश्विन स्वर्णगिरि में गणधर गोत्री जगन्नाथ के लिए लिखा गया। भक्तासर स्तोत्र बालावबोध सं० १८११ ज्येष्ठ शुक्ल ११ कालाऊना में लिखा गया तथा नवतत्व बालावबोध सं० १८३४ सबलसिंह के पठनार्थ लिखा गया था। __ इस प्रकार संस्कृत, हिन्दी, पंजाबी, मरुगर्जर आदि नाना भाषाओं और गद्य, पद्य की विविध शैलियों के ये सिद्धहस्त लेखक थे। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० ५५-५६, ३२३-३२४ और १६४२ (प्र०सं०) तथा वही भाग ५, पृ० ३३९-४० (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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