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________________ रामविजय (रूपचंद) ४११ थे। संस्कृत में इन्होंने गौतमीय काव्य और संस्कृत गद्य में गुणमान प्रकरण नामक ग्रंथ लिखा है। इनकी मरुगुर्जर गद्य और पद्य में अग्रलिखित रचनाएँ प्राप्त हैं ‘भर्तृहरि शतक त्रय बालावबोध १७८८ सोजत; अमरशतक बालावबोध १७९१ सोजत; समयसार बालावबोध १७९८; भक्तामर टबा १८११ कालाऊना; हेम व्याकरण भाषा टीका सं० १८२२ कालाऊना; नवतत्व भाषा टीका सं० १८२३ कालाऊना । सन्निपात कलिका टबा १८३१ पाली, दुरियर स्तोत्र टबा १०१३, बिलाडा; कल्याण मंदिर स्तोत्र टबा सं० १८११ कालाऊना; मुहर्तमणिमालाग्रंथ भाषा सं० १८०१ (जोशी वछराज के लिए रचित) विवाह पडल भाषा, कल्पसूत्र बालावबोध और महावीर ७२ वर्षायु खुलासापत्र । __इनमें से आधे से अधिक रचनाओं का रचनाकाल १९वीं (वि.) का पूर्वार्द्ध है, फिर भी इनकी रचना प्रक्रिया १८वीं (वि०) के उत्तरार्द्ध में प्रारम्भ हो चुकी थी, अतः पूर्व रीति पर इनका वर्णन १८वीं में ही कर दिया जा रहा है। इनके पद्यबद्ध रचनाओं की सूची आगे प्रस्तुत की जा रही है चित्रसेन पद्मावती चौपई १८१४ बीकानेर; नेमिनवरसो, ओसवाल रास (गोत्र नामावली), गौड़ी पार्श्वनाथ वृहद् छन्द (११३ गाथा), आबस्तवन, फलौदी पार्श्वनाथ स्तवन, नयनिक्षेपणादि स्तवन, सहस्रकूट स्तवन, जिनभक्तसूरि सींह चक्री छन्द (पंजाबी भाषा)। आपकी सर्वप्रथम रचना 'समुद्रवद्ध कवित्त' सं० १७६७, वील्हावास में लिखी गई थी। हिन्दी में लिखित १८वीं शताब्दी की एक अन्य रचना जिनसुख सरि मजलस है। आपका स्वर्गवास ९० वर्ष की आयु में सं० १८३४ पाली में हुआ। आपकी कतिपय रचनाओं का परिचय आगे प्रस्तुत किया जा रहा है। गद्य की भाषा को लेखक ने लोकभाषा कहा है किन्तु उसके उद्धरण उपलब्ध नहीं हैं । 'भतृहरिशतक त्रय बाला०' (सं० १७८८ कार्तिक शुक्ल १३ सोजत) के आदि में इन्होंने लिखा है, यथा -.. सर्वदर्शन मानम्य रूपचंद यतिः कविः, सन्नीतिशतकस्यास्य ब्रूतेऽअर्थ लोकभाषया । १. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० १०४-१०५ । २. वही, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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