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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रतीत होती हैं । अचलकीर्ति ने इनके अलावा भक्तिपरक पदों का भी निर्माण किया है, यथा काह करु कैसे तिरु भवसागर भारी, माया मोह मगन भयो महा विकल विकारी। इनसे व्रजभाषा के भक्त कवियों के पदों का प्रभाव प्रकट होता है जो स्वाभाविक है। वे उसी क्षेत्र (व्रज) के आसपास रह रहे थे और व्रजभाषा उस समय की मान्य काव्य भाषा थी। उसमें रचना करना कवि के लिए गौरव की बात थी। इनका एक फाग दिगंबर मंदिर, बड़ौत के एक पदसंग्रह में अंकित है जिसकी दो पंक्तियाँ देखिए डफ बाजन लागे हो हो होरी, सब मिलि फाग सुहावनी, हो खेलत हैं नरनारी । छांडि गयो महा साँवरो प्यारो, जाय चड़यो गिरिनारी । डफ ।' पंक्तियों से कवि सुलभ उल्लास और सरसता का अनुभव होता है और इस अनुमान की पुष्टि होती है कि अचलकीर्ति की जैन कवि के रूप में कीर्ति वस्तुतः अचल रहेगी। वे कोरे उपदेशक ही नहीं बल्कि भावुक भक्त और सहृदय कवि थे। अजयराज पाटणी-इनका जन्म सांगानेर(आमरे) में १८वीं शती (विक्रमीय) के अंतिम चरण में हआ था। इनके पिता मनसुखराम अथवा मनीराम पाटणी गोत्र के खंडेलवाल थे। अजयराज ने भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य महेन्द्रकीति से ज्ञान प्राप्त किया था। ये हिन्दी और संस्कृत के अच्छे विद्वान् थे । इनकी प्रायः बीस रचनाएँ उपलब्ध हैं; आदिपुराण (१७९७), नेमिनाथ चरित्र भाषा सं० १७३५, कक्काबत्तीसी, चरखा चउपइ, चारमित्रों की कथा, चौबीस तीर्थंकर पूजा, चौबीस तीर्थंकर स्तुति, जिनगीत, जिनजी की रसोई, णमोकार सिद्धि, नन्दीश्वर पूजा, पंचमेरु पूजा, पार्श्वनाथ जी का सालेहा, बीस तीर्थंकरों की जयमाल, यशोधर चौपइ, वंदना, शांतिनाथ जयमाल, शिवरमणी विवाह और विनती । इनमें काव्यत्व की दृष्टि से शिवरमणी विवाह और चरखा चउपइ उत्तम कृतियाँ हैं । ये दोनों रूपक काव्य हैं। १. डा० प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि प० २४१-२४२ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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