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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चरन कमल पूजत थिरता लहि, एक अहं सुधि झिलिया,
रामचन्द्र गुन बरनत ही सकल पाप टलि चलिया। इन्होंने आदि जिन ऋषभ के तपसी भेस की भव्यता का वर्णन करते हुए लिखा है -
चलि जिन आदि देख, सुर गन खग दित सभूय सकल संग तजि त्रणवत् वन में नगन चिदावम पेषै । रामचन्द्र धनि दानी कहै सुररतन वृष्टि करि पेरें ।'
रामविजय-तपागच्छ के विमलविजय आपके गुरु थे। आप ख्यातिलब्ध सुकवि थे और आपकी कई रचनाएं प्रकाशित हैं । प्रसिद्ध रचनाओं का विवरण आगे दिया जा रहा है। 'बाहुबल स्वाध्याय' (सं० १७७१, भाद्र शुक्ल १, रवि) का आदि
स्वस्ति श्री वरवा भणि, पणला रीषभ जिणंद, गायस्यु तस सुत अतिबलि, बाहुबलि मूनिचंद । भरते साठि सहस बरस, साध्यां षट खंड देश;
अछि ऊछव आणंद स्यु, वनिता किध परवेश । रचनाकाल
ऋषभजिन पसाय इण परे, संवत सतर अकोतरे,
भादर सुत पडवा दिने रविवार ऊलटभरे । गुरुपरम्परा--
विमलविजय उवझाय सदगुरु शिष्य तस शुभवरे,
बाहुबल मुनिराय गातां, रामविजय जयजयवरे । यह रचना 'जैन संञ्झाय संग्रह' (साराभाई नवाब) और मोटें संञ्झाय माला संग्रह में प्रकाशित है ।
गौडी पास स्तवन (अथवा छन्द) ६३ कड़ी, सं० १७७२, विजयादशमी। रचनाकाल
नयणां मुनि मुनि चंद वरसे विजेदशमि दिने,
रचिओ रंगे छंद कमलाकीर्ति संनिधि । १. डा० प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि, पृ० २४२-२४७
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