SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रामचन्द्र ४०७ श्री प्रेमसागर जैन ने इसका रचनाकाल सं० १७११ फाल्गुन बतायां है। श्रीपाल चौपाई की चर्चा नाहटा ने की है और रचनाकाल तथा स्थान क्रमशः सं० १७२५, बीकानेर बताया है। अन्य विवरण-उद्धरण नहीं दिया है । इसी प्रकार मिश्रबन्धुओं ने इनकी रचित जंबूचरित का उल्लेख किया है किन्त परिचय नहीं दिया है। अतः इन चरित काव्यों का विशेष विवरण-उद्धरण देना सम्भव नहीं हो सका है। मूलदेव चरित एक ऐतिहासिक काव्य है जिसमें मूलदेव का चरित्र वर्णित है। स्तवनों में दस पच्चखाण गभित वीर स्तवन ३३ कड़ी की रचना है जो सं० १७३१ पोष शुक्ल दसमी को पूर्ण हुई थी। इसका आदि देखें-- श्री सिद्धारथनदन नमुं, महावीर भगवंत, त्रिगटइ वइण जिनवर परखद वार मिलंत । रचनाकाल - संवत विधि गुण अश्व शशि, वलि पोस सुदि दसमी दिनइ, पदमरंग वाचक सीस गणिवर रामचन्द्र तपविधि भणइ ।' यह रचना चैत्य आदि संज्झाय भाग १ तथा अभयरत्नसार आदि में प्रकाशित है। सम्मेद शिखर स्तवन (सं० १७५०) में जैनों के प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र सम्मेद शिखर की स्तुति है। यहाँ जैनों के २० तीर्थङ्करों का निर्वाण हुआ था। इसलिए इसकी महत्ता और पवित्रता की सभी मुक्तकंठ से सराहना करते हैं। बीकानेर आदिनाथ स्तवन सं० १७३० जेठ सुदी १३ की रचना है । इसमें बीकानेर में स्थित आदिनाथ की वंदना है। इनके कुछ पद भी प्राप्त हैं जिनमें भक्ति, लालित्य एवं मधुर कल्पना की झलक एकत्र मिलती है। कवि जिनराज का भक्त है और कहता है अब जिनराय मिलिया, गुण गणधर सुन्दर अनूप, जबलों भेद लह्यौ नहि प्रभु को गति गति में अतिरुलिया । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ३०७-६०८ भाग ३, पृ० १३८, १२९६, १३.१ और वही भाग ४, पृ० १७१-१७५ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy