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________________ रामविजय रोहिणी संञ्झाय -- अंतिम पंक्ति विमलविजय उवझाय नो सीस, रामविजय लहे सकल जगीस । यह भी तीर्थमाला में संग्रहीत है । महावीर जिन पंच कल्याणक (सं० १७७३ आषाढ़ शुक्ल ५, सुरत) रचनाकाल ओम चरम जिणवर सयल सुखकर थुण्यो अति ऊलटभरे, आषाढ़ उज्ज्वल पंचमी दिन संवत सत्तर तिहोत्तरे । 11 यह कृति चैत्य आदि संञ्झाय भाग ३ तथा अन्यत्र से भी प्रकाशित है । २४ तीर्थंङ्कर आंतरानुं स्तव (१७७३ सुरत) आदि-- सारदा सारदा ने सूमरे, पद पंकज पणमेव चोवीसे जिन वरणवु, अंतरजूत संखेव । रचनाकाल चोवीस जिनवर तणो अंतर भणो अति उल्लास ओ, संवत सतर तोतेरे ओम रही सूरत चोमास अ । यह रचना जिनेन्द्र भक्ति प्रकाश और चैत्य आदि संञ्झाय भाग ३ तथा अन्यत्र से भी प्रकाशित एवं लोकप्रिय है । ૪૦૬ विजयरत्नसूरि रास (सं० १७७३ भाद्र कृष्ण २ के पश्चात् ) यह एक' महत्वपूर्ण रचना है । यह 'जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय' में प्रकाशित है। इसमें विजयरत्न की गुणावली और उनका इतिवृत्त वर्णित है । इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है- सुप्रसन्न आल्हादकर, सदा जास मुखचंद', वंछित पूरण कल्पतरु, सेवक श्री जिनचंद ! इसमें विजयरत्न और रत्नविजय दोनों नाम मिलते हैं । रास द्वारा सूचना मिलती है कि आप साह हीरा और हीरदे के तीसरे पुत्र थे । पति की मृत्यु के पश्चात् हीरदे ने तीसरे पुत्र जेठो को जूनागढ़ जाकर विजयप्रभ सूरि को सौंप दिया, उन्होंने दीक्षा दी और नाम जिनविजय Jain Education International १. सम्पादक मुनिजिनविजग जैन -- ऐतिहासिक गुर्जर काव्यसंचय विजयरत्न सूरि रास, पृ० ३७-४५ । २. श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई -- जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० २८१ २८४ ( न०सं० ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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