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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सकल सुख दातार सार, सेवक प्रतिपाल, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव प्रणमु मणि काल । श्री विशाल सोम सूरीसरु अ, अह निसि ध्याऊं ध्यान, विमलाचल गिरि राजीओ, सुरनर करि गुणगान । श्री विमलाचल राजीउ अ, प्रणमे सूरनर वन्द, राजरत्न उवझाय कहि, धनि धनि आदि जिणंद । अन्त-- मनवचन हिआलिं, वीरनी सीष चालिं, त्रिहु भोवन मांहि, हालि दुख दोभाग जालि । सुभनयन निहालिं, भगति विघन दालिं। संघना कोडपालि ।' स्पष्ट है कि यह रचना या आख्यान भी नवकार मन्त्र के महिमा की घोषणा करने के लिए दृष्टान्त स्वरूप ही लिखी गई है। राजसिंह कुमार की कथा उदाहरण है। काव्य का रस हो या न हो पर इस प्रकार की रचनाओं में आख्यान या कथा का आनन्द तो रहता है जिसकी मिठास में धार्मिक उपदेश रूपी औषधि को ग्राह्य बनाया जाता है। राजलाभ--खरतरगच्छ के युगप्रधान जिनचंद्र सूरि के शिष्य तिलककमल> पद्महेम> दानराज> निलयसुन्दर> हर्षराज हुए। इनके गुरु हीरकीर्ति दानराज के शिष्य थे। राजलाभ की निम्नलिखित रचनाओं की सूची अगरचन्द नाहटा ने दी है - भद्रनंद संधि सं० १७२३ पोष शुक्ल १२, सोमवार; धन्ना शालिभद्र चौपाई सं० १७२६ आश्विन शुक्ल ५, वनाड़ ग्राम; गौड़ी छन्द (गाथा २८) सं० १७६५ श्रावण शुक्ल ७, केलाग्राम में राजसुन्दर के आग्रह पर लिखित), स्वप्नाधिकार (गाथा २३)सं० १७६५ श्रावण शुक्ल ७, केलाग्राम, बीशी और दानछत्रीसी सं० १७२३ माह वद २ सोम, वीर २७, भव स्तव (गाथा २९) सं० १७३४ भाद्र; उत्तराध्ययन ३६ गीत, इत्यादि । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, १० ११४०-४२ (प्र०सं०) और वही भाग ४, ५० १४४-१४६ (न०सं०)। २. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० ९९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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