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________________ লাগ ३९५ इनमें से कुछ रचनाओं के उद्धरण और विवरण आगे प्रस्तुत किए जा रहे हैं, दानछत्रीसी का रचनाकाल देखिये---- संवत सतरह सै तेवीसे, माह बहुल तिथि बीजा जी, वार सोम मे छान छत्तीसी, समकित तरु नो बीज जी। गुरुपरम्परा · वाचक हीरकीरत बड़भागी, ज्ञानक्रिया गुणधारी जी, तासु सीस गुणहरष सोभागी, मनिहर्ष मतिसार जी। तासु पसाये दान छत्रीसी, पभणे लाभ अम जी, भणे सुणे जे भवि भावे, रलीरंग सुखखेम जी। वीर २७ भव स्तव-आदि - पाय प्रणमु रे महावीर शासन धणी, चउवीसमो रे सिवसुखदायक सुरमणी । रचनाकाल सतरइ सइ चउत्रीसइ रे लाल, भाद्रव मास उल्हास सु, महावीर मइ भेटिया रे लाल, सकल फली मुझ आस सु । कलश इम स्तव्यउ जिनवर सयल सुखकर मात त्रिशलानंदनो, शुभ सीह लक्षण वरण कंचन भवियजन आनंद नो। वा. हीरकीरति सीस वाचक राजहर्ष सुपसाय अ, राजलाभ सेव्यां सदा जिनवर सुखसंपद पाव । उत्तराध्ययन ३६ छन्द - विनय करे जो साधो विनय करे जो, मनमइ नवि अभिमान धरे जो। सजोग अभ्यंतर वाह्य मुंके जे, अनगार भिक्खु म विनय चूके जो। उत्तराध्ययन मइ प्रथम अध्ययनइ, विनयमारग प्रकास्यउ सहुनइ, वाचक राजहर्ष तसु सीस, राजलाभ पभणइ सुजगीस ।' १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १२३२-३३. (प्र०सं०) और वही भाग ४ पृ० ३१८-१९ (न०सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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