SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरुगुर्जर हिन्दो जैन साहित्य का बृहद् इतिहास में इतिहास, इतिवृत्त या ऐहित्य की चर्चा प्रधानतः होती है। पुराण शब्द में 'इति इह आसीत', 'यहाँ ऐसा हुआ' ऐसी कथाओं का वर्णन होने से उसमें इतिहास की झलक मिलती है। पुराणों में तीनों लोक, तीनों काल, तीर्थ और सत्पुरुषों की चर्चा होती है। ये काव्य चरित काव्यों से साम्य रखते हैं पर एक अंतर यह अवश्य है कि चरितकाव्यों की अपेक्षा इनमें वर्णन विस्तृत, धार्मिक उपदेशों की अधिकता और कथात्मक जटिलता अधिक होती है। उदाहरण के लिए पार्वपुराण देखा जा सकता है। काव्यरूपों की दृष्टि से भी १८वीं शती का जैनसाहित्य वैविध्यपूर्ण और संपन्न है। इस काल में चरित, पुराण, रास या रासो, कथा, चौपई या चौपाई, मंगल, वेलि और बारहमासा आदि प्रबन्धों और खण्डप्रबन्ध तथा संवाद, बीसी, पच्चीसी, चौबीसी, बत्तीसी, बावनी, बहत्तरी, शतक, स्तुति, पूजा, पद आदि नाना मुक्तक काव्यरूपों में सहस्रों रचनायें की गईं। इन काव्यरूपों की संक्षिप्त चर्चा इससे पूर्व के खण्ड में की गई है अतः यहाँ केवल नामोल्लेख किया जा रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy